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________________ ४४४ भगवतीसूत्रे णेन एवमुच्यते - पञ्चमदेशिकः स्कन्धः स्यात् आत्मा कथञ्चित् सद्रूपः स्यात् नो आत्मा - कथञ्चित् असद्रूपः स्यात् अवक्तव्यम् - आत्मा च सद्रूपेण, नो नो आत्मा च असद्रूपेण युगपद् वक्त मशक रमित्यादि । भगवानाह - गोयमा ! अप 9 आट्टे आया १, परस्स आइट्ठे नो आया २, तदुभयस्स आइडे अवत्तव्वं ३ देसे आइट्टे सम्भावपज्जवे, देसे आइडे असम्भावपज्जवे एवं दुयगसंजोगे सब्वे पडंति । तियगसंजोगे एकोण पडइ' हे गौतम ! पञ्चमदेशिकः स्कन्धः आत्मनः स्वस्य पञ्चमदेशिक स्कस्य वर्णादि पर्यायैः आदिष्टे सति तैर्व्यपदिष्टः सन् आत्मास्वपर्यायापेक्षया सद्रूपो भवति ९, परस्य षट्प्रदेशिकादि स्कन्धान्तरस्यपर्यायैः अदिष्टे सति तैर्व्यपदिष्टः सन् नो आत्मा - अनात्मा परपर्याया पेक्षया असद्रूपो भवति तदुभयस्य स्वपरोभयपर्यायैः आदिष्टे सति तदुभय२२ भंग हुए हैं ? कि जिससे आप ऐसा कहते हैं कि वह पंचप्रदेशिक स्कन्ध कचित् सद्रूप है, कथंचित् असद्रूप है और कथंचित् वह अवक्तव्यरूप है- क्योंकि सद्रूप से और असद्रूप से वह शब्दों द्वारा एक साथ नहीं कहा जा सकता है ? इत्यादि इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा ! अपणो आइट्ठे आया?, परस्स आइट्ठे नो आयार, तदुभयस्स आइडे अवत्तम्बं ३ देसे आइट्ठे सम्भावपज्जवे, देसे आइट्ठे असभावपज्जवे एवं दुयगसंजोगे सव्वे पडंति, तियसंजोगे एक्कोण पडइ' हे गौतम! पंचप्रदेशिक स्कंत्र अपनी पंचप्रदेशिक स्कंध की वर्णादिपर्यायों से आदिष्ट होने पर आत्मा अपनी पर्यायों की अपनी अपेक्षा से सद्रूप होता है१, और पद्मदेशिकादि पर-स्कन्धान्तर की अपेक्षा से आदिष्ट होने पर वह नो आत्मा परपर्याय की अपेक्षा से असद्रूप होता है २, અસદ્ગુરૂપ છે અને અમુક અપેક્ષાએ અવક્તવ્ય છે, ઇત્યાદિ ૨૩ પૂર્વકત ભ‘ગ આપ અહી' શા કારણે કહેા છે? भडावीर अलुनो उत्तर- " गोयमा ! अप्पणो आइट्टे आया १, परस्स आइट्ठे नो आयार, तदुभयस्स आइट्ठे अवत्तत्र्व ३, देखे आइडे सम्भावपज्जवे, देसे आइट्टे असम्भाववज्जवे एवं दुयगसंजोगे सव्वे पडंति, तिग्रसंजोगे एको ण पडइ " હે ગૌતમ ! ૫'ચપ્રદેશિક સ્કષ પેાતાના (પંચપ્રદેશિક સ્કધના) વર્ણાદ્રિ પર્યોચેની અપેક્ષાએ આષ્ટિ (કથિત) થાય ત્યારે તે પેાતાના પર્યાયની અપેક્ષાએ સદૂરૂપ હાય છે. (૨) પંચપ્રદેશિક કધ જ્યારે ષટ્રપ્રદેશિક આઢિ કન્યાન્તરની અપેક્ષાએ આદિષ્ટ થાય છે, ત્યારે તે પરપર્યાયની અપેક્ષાએ ના भात्मा ३५-असद्द३५- होय छे. (3) क्यारे ते तहुलय (स्वपर्याय भने ५२. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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