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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ०१० सू०३ रत्नप्रभादिविशेषनिरूपणम् ४२९ सिय आया१, सिय नोआया२,' हे गौतम ! चतुष्प्रदेशिकः स्कन्धः स्यात् आत्मा सद्रूप:१, स्यात् नो आत्मा असद्रूपः२, 'सिय आत्तव्यं आयाइय नो आया. इय३' स्यात् अक्तव्यम्-आत्मा सद्रूप इति च नो आत्मा-अनात्मा असद्रूप इति च युगपद्व्यपदेष्टुमशक्यम् ३, 'सिय आया य नो आया य१' स्यात् आत्मा च सदरूपः, नो आत्मा च-असद्रूपः१, 'सिय आया य नो आयाओ यर' स्यात् आत्मा च सद्रूपः स्यात् नो आत्मानश्च अपद्रूपाः२, ‘सिय आयाओ य नो आया य३' स्यात् आत्मानश्च सद्रूपाः स्यात् नो आत्मा च असद्रूपः३, 'सिय आयाओ य नो आयाओ य४,' स्यात् आत्मानश्च सद्रूपाः नो आत्मानश्च असद्रूपाः४ 'सिय आया य अवत्तव्यं आयाइय नो आयाइ य१,' स्यात् आत्मा या असद्रूप है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'च उप्पएसिए खंधे सिय आया१, सिय नो आया २' हे गौतम ! चतुष्पदेशिक स्कंध स्यात् कथं. चित् आत्मा-सद्रूप है १, कथंचित् आत्मा-असदुरूप है २, 'सिय अव. त्तव्यं आयाइय नो आयाइय' और कथंचित् वह आत्मा और अनात्मा इन शब्दों द्वारा एक ही काल में कहा नहीं जा सकने के कारण अवक्त. व्यरूप है ३, 'सिय आया-य नो आया य' कथंचित् वह सदरूप है और असदुरूप है ४, 'सिय आया य नो आयाओ य' कथंचित् वह एकप्रदेश की अपेक्षा सदरूप है और अनेक अपने प्रदेशों की अपेक्षा वह असदुरूप है ५, "सिय आयाओ य ना आया य' कथंचित् वह अपने अनेक प्रदेशों को अपेक्षा सद्रूप है और एक प्रदेश की अपेक्षा असरूप है। 'सिय आयाओ य नो आयाओ य' कथंचित् वह चतुष्प्रदेशिक स्कंध अनेक प्रदेशों से सद्रूप है, और अनेक प्रदेशों से असद्रूप भी है७,
महावीर प्रभुनी उत्त२-" च उप्पएसिए खंधे सिय आया१, सिय नो आयार" 3 गीतम! या२५शि४ २४५ (१) मभु सपेक्षा माम३५स६३५ छ भने (२) भभु अपेक्षाय सनात्म३५-मस६३५ छ, “सिय अवत्तव्वं आयाइय नो आयाइ ५३" मने मामा मन न मामा शाह 43 न्य साथे मारय पान २ ते ४५थित अतव्य ३५ ५५ छ. “ सिय आया य नो आया य१" (१) ते अभु अपेक्षा स६३५ ५५ छ भने मस६३५ ५४ छ, “सिय आया य नो आयाओ य२" (२) धनी मपेक्षा ક્યારેક સરૂપ પણ હોય છે અને પિતાના અનેક પ્રદેશોની અપેક્ષાએ તે यारे मस६३५ ५ डाय छे. “सिय आयाओ य, नो आयाइय३ " (3) કયારેક તે પિતાના પ્રદેશની અપેક્ષાએ સદ્ગુરૂપ હોય છે અને સ્કંધની અપે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦