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________________ ४१० भगवतीसूत्रे आत्मा सद्रूप वर्तते ? किंवा अन्यः नो आत्मा - अनात्मा असद्रूपो द्विपदेशिकः स्कन्धो वर्तते ? भगवानाह - 'गोयमा ! दुप्पए सिए खंधे सिय आया?, सिय नो आया२, सिय अवत्त आयाइय, नो आयाइय३' हे गौतम! द्विपदेशिकः स्कन्धः स्यात् आत्मा - सद्रूपः १, स्यात् नो आत्मा-अनात्मा-असद्रूपः २, स्यात् अवक्तव्यःआत्मा इति च नोआत्मा - अनात्मा इति च शब्देन युगपदव्यपदेष्टुमशक्यः ३, 'सिय आया य, नो आया य४' द्विपदेशिकः स्यात् आत्मा च सद्रूपः, नो आत्माअनात्मा च असद्रूपः 'सिय आया य अवत्तव्वं आयाइय नो आयाइय५' द्विप्रदेशिकः स्कन्धः स्यात् आत्मा च सद्रूपश्व, अवक्तव्यः - आत्मा इति च नो आत्माअनात्मा इति च शब्देन युगपद्व्यपदेष्टुमशक्यः, 'सिय नो आया य अवत्तन्वं आयाइय नो आयाइय६,' द्विपदेशिकः स्कन्धः स्यात् नो आत्मा - अनात्मा च, अवक्तव्यः - आत्मा इति च नो आत्मा-अनात्मा इति च शब्देन युगपद्व्यपदेष्टुया वह असद्रूप है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! दुप्पएसिए खंधे सिय आया, सिय नो आया २, सिय अवन्त्तव्यं आयाइय नो आयाइय ३' हे गौतम! द्विप्रदेशिक स्कन्ध कथंचित् सद्रूप है ? कथंचित् असद्रूप है२, कथंचित् आत्मा और नो आत्मा इन शब्दों द्वारा वह युगपत् कहने को अशक्य होने के कारण अवक्तव्य भी है३, 'सिय आया य नो आया य ४, कथंचित् वह सत् असत् उभयरूप भी है ४ 'सिय आयाय अवतव्यं आयाइय नो आयाइय ५' कतंचित् वह सद्रूप भी है और आत्मा अनात्मा इन शब्दों से युगपत् कहने को अशक्य होने के कारण अवक्तव्य भी है५, 'सिय नो आया य अवत्तव्यं आयाइय नो आयाइय६' कथंचित् वह असद्रूप भी है और आत्मा नो आत्मा इन शब्दों द्वारा युगपत् कहने को अशक्य होने के कारण " महावीर अभुने। उत्तर- " गोयमा ! दुप्पएखिए खंधे म्रिय आया १, सिय नो आया२, सिय अवत्तव्यं आयाइय नो आयाइय३, म्रिय आया य नो आया २४, स्त्रिय आया य अवसव्वं आयाइय नो आयाइय५, सिय नो आया य अवत्तवं आयाइय नो आयाइय६ " हे गौतम! द्विप्रदेशि २४६ (१) अथथित् सदृश्य छे, (२) स्थायित् सदृश्य छे, (3) आत्मा भने नो आत्मा, આ બે શબ્દો વડે વાચ્ય ન હોવાને કારણે તે કથાચિત્ અવક્તવ્ય પશુ છે, (४) ते थायित् सत् असत् (सहय-असदृ३५) मन्ने ३५ पशु छे, (4) તે કથંચિત્ સદૂરૂપ પણ છે અને આત્મા અનાત્મા શબ્દો વડે અવા હાવાને કારણે અવક્તવ્ય પણ છે. (૬) તે કથ'ચિત્ અસરૂપ પણ છે અને આત્મા, ના આત્મા, આ એ શબ્દો દ્વારા એક સાથે વાચ્યું ન હેાવાને શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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