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________________ ३९० नियमात् आत्मा भवति एवं पूर्वोक्तरीत्या यावत्-भवनपतिविकलेन्द्रियपञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक मनुष्यवानव्यन्तरज्योतिषिकवैमानिकानां निरन्तरम् - अव्यवधानेन दण्डको वक्तव्यः । तथा च तेषामपि आत्मा नियमाद् दर्शनरूपो भवति, दर्शनमपि नियमादात्मरूपं भवतीति भावः ॥ मू० २ || भगवतीसूत्रे रत्नप्रभादिविशेषवक्तव्यता । मूलम् - आया भंते! रयणप्पभा पुढवी, अन्ना रयणप्पभा पुढवी ? गोयमा ! रयणप्पभा पुढवी सिय आया सिय नो आया, सिय अवत्तव्वं आयाइय नो आयाइय, से केणद्वेणं भंते! एवं geet - रयणप्पभापुढवी सिय आया सियनो आया, सिय अवतवं आयाइय नो आयाइय ? गोयमा ! अप्पणो आइडे आया; परस्त आइट्ठे नो आया, तदुभयस्स आइट्ठे अवत्तच्वं रयणप्पभा पुढवी आयाइय नो आयाइय से तेणट्टेणं तं चैव जाव नो आयाइय | आया भंते! सक्करप्पभा पुढवी जहा रयणप्पभा पुढवी तहा सक्करप्पभाए वि, एवं जाव अहे सत्तमा ! आया भंते! सोहम्मे कप्पे पुच्छा, गोयमा ! सोहम्मे कप्ये सिय आया सिय नो आया जाव नो आयाइय । से केणट्टेणं भंते! जाव नो आत्मा नियम से दर्शन रूप होता है और नैरयिक- आत्म संबंधी दर्शन भी नियम से आत्मरूप होता है। इसी प्रकार से यावत भवनपति, विक लेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय तिर्येच, मनुष्य, वानव्यन्तर, ज्योतिषिक, वैमानिक इनका दण्डक भी विना व्यवधान के कहना चाहिये तथाच इनकी भी आत्मा नियम से दर्शनरूप होता है और इनका दर्शन भी नियम से आत्मरूप होता है || सू० २॥ દનરૂપ હાય છે, અને નારાનું આત્મા સંબંધી દર્શીન પશુ નિયમથી જ આત્મરૂપ હાય છે. એજ પ્રમાણે ભવનપતિ, વિકલેન્દ્રિય, પચેન્દ્રિયતિય "ચ, મનુષ્ય, વાનવ્યન્તર, કૈાતિષિક અને વૈમાનિકને આત્મા નિયમથી જ દર્શીન રૂપ હાય છે, અને તેમનુ' દન પણુ નિયમથી જ આત્મરૂપ હોય છે. પ્રસૂ૦૨ા શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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