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________________ मगवतीमत्र द्विधा क्रियमाणः,एकतः परमाणुपुद्गलो भवति, एकतः-अपरभागे द्विपदेशिका स्कन्धो भवति, 'तिहा कनिमाणे तिणि परमाणुपोग्गला भवंति' त्रिमदेशिकः स्कन्धः त्रिधा क्रियमाणः त्रपः परमाणुपुद्गलाः भवन्ति, गौतमः पृच्छति-'चचारि भंते ! परमाणुपोग्गला एगय भी साहन्नति जाव पुच्छा' हे भदन्त ! चत्वारः परमाणुपुद्गलाः एकतः संहन्यन्ते- संहता भवन्ति, संघी भवन्तीत्यर्थः, यावत्-संहत्यसबीभूय, किं स्वरूपं वस्तु भवति ? इति पृच्छा, भगवानाह -गोयमा ! चउप्पएसिए खंधे भवइ ' हे गौतम ! चत्वारः परमाणुपुद्गलाः संहत्य-चतुष्पदेशिकः स्कन्धो खंधे भवई' जब इसके दो विभाग होते हैं-तब एक विभाग एक परमाणु पुद्गलरूप होता है और दूसरा विभाग द्विप्रदेशिक स्कन्धकरूप होता है। 'तिहा कज्जमाणे तिणि परमाणु पोरगला भवंति' जब यह त्रिप्रदेशिक स्कंध तीन विभागों में विभक्त किया जाता है-तथ तीन पुद्गल परमाणुरूप अर्थात् एक पुद्गल परमाणुरूप तीन विभाग इसके हो जाते हैं। ____ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'चत्तारि मंते ! परमाणुपोग्गला एगयओ साहन्नति, जाब पुच्छा' हे भदन्त ! जथ चार पुद्गल परमाणु आपस में एकत्रित होते हैं-एकरूप से मिल जाते हैं तब उनसे क्या वस्तु उत्पन्न होती है-अर्थात्-चार-पुद्गल परमाणुओं की एकता में जो स्कंध उत्पन्न होता है-उसका क्या नाम है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! चउपएसिए खंधे भव' हे गौतम ! चार पुद्ग परमाणु आपस में जच मिलते हैं-तब उनसे एक चार प्रदेश वाला स्कंध उत्पन्न दुप्पएसिए खंधे भवइ ” यार तेना मे qिHIDA याय , त्यारे में विमा એક પરમાણુ યુદ્ધગલ રૂપ અને બીજો વિભાગ દ્વિપદેશિક સ્કંધરૂપ બને છે. " तिहा कज्जमाणे तिणि परमाणुपोग्गला भवंति " जयारे निशि સ્કંધને ત્રણ વિભાગોમાં વિભકત કરવામાં આવે છે, ત્યારે એક એક પુદ્ગલપરમાણુ રૂપ ત્રણ વિભાગમાં તે વિભકત થઈ જાય છે. गौतम स्वामीना -" चत्तारि भंते ! परमाणुपोग्गला एगयओ साहण्णंति, जाव पुच्छा " उ लगवन् ! न्यारे ५२मा पुरा में भी साथै એકત્રિત થાય છે, ત્યારે તેમના સંગથી શું ઉત્પન્ન થાય છે એટલે ચાર પુકલપરમાણુઓ એકત્ર થવાથી જે સ્કંધ ઉત્પન્ન થાય છે તેનું નામ શું છે? भापी२ प्रलुन। उत्त२-" गोयमा ! च उत्एपसिए खंधे भव" हे गौतम ! જ્યારે ચાર પરમાણુ યુદ્ધ અરસ્પરસની સાથે સંગ પામે છે, ત્યારે તેમના સંયોગથી એક ચાર પ્રદેશિક સ્કંધ ઉત્પન્ન થાય છે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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