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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१२ उ०९ सू०४ भव्यद्रव्यवादिविकुर्षणानिरूपणम् ३२७ कुर्वन्ति । एवं नरदेवावि एवं धम्मदेवा वि' एवं-पूर्वोक्तरीत्या, नरदेवा अपि, 'धर्मदेवा अपि वाच्याः। गौतम पृच्छति-'देवाहिदेवाणं पुच्छा' हे भदन्त ! देशधिदेवाः किम् एकत्वम्-एकरूपं विकुक्तुिं प्रभवः-समर्थाः भवन्ति ? किंवा पृथुत्वम् अनेक रूपाणि, विकुक्तुिं प्रभवः-समर्थाः भवन्ति ? इति पृच्छा, भगवानाह-'गोयमा ! एगतंपि पहू विउवित्तए, पुहुत्तं पि पहू विउविचए' हे गौत्तम! देवाधिदेवाः खलु एकत्वमपि-एकरूपमपि, विकुर्वितुं प्रभवः-समर्थाः भवन्ति, अथ च पृथुत्वमपिअनेकरूपाण्यपि विकुर्वितुं प्रभवः-समर्था भवन्ति, किन्तु ‘णो चेवणं संपत्तीए विउविसु वा, विउब्धिति वा, विउविस्संति वा' नो चैव खलु, सम्पाप्त्या-तद्दे शावगाहनेन वैक्रियरूपसंपादनेनेत्यर्थः कदाचित् व्यकुर्विषुर्वा, विकुन्ति वा, विकुर्विष्यन्ति वा, केवलं तेषां वैक्रियशक्तेः सामर्थ्यप्रतिपादनपदमेतदवसेयम् । फिर वे इच्छानुसार अपने कामों को करते हैं । ' एवं नरदेवावि, एवं धम्मदेवा वि' इसी प्रकार का कथन नरदेव और धर्मदेवों के विषय में भी कहना चाहिये अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'देवाहिदेवाणं पुच्छा' है भदन्त ! देवाधिदेव क्या एक रूप को विकुर्वणा करने में समर्थ होते हैं या अनेक रूपों की विकुर्वणा करने में समर्थ होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! 'एगत्तं पि पभू विउब्धित्तए, पुहुत्तंपि पभू विउन्चित्तए' देवाधिदेव एकरूप की भी अपनी विकुर्वणा शक्ति द्वारा निष्पत्ति कर सकते है और अनेक रूपों की भी निष्पत्ति कर सकते हैं-किन्तु 'णो चेवण संपत्तीए विउब्धिालु वा, विउविति वा, विउविस्संति वा' उन्होंने वैक्रियरूप संपादन द्वारा न पहले कभी ऐसा किया है न वे वर्तमान काल में भी ऐसा करते हैं। पाताना येनि ४३ छ. “ एवं नरदेवा वि, एवं धम्मदेवा वि" स ४१२नु કથન નરદેવ અને ધર્મદેવની વિકુર્વણુ શક્તિ વિષે પણ સમજવું. गौतम स्वामीना प्रश्न-"देवाहिदेवाणं पुच्छा" 8 लगवन् ! हेवाधिवे। શ એક રૂપની વિકુણા કરવાને સમર્થ હોય છે, કે અનેક રૂપોની વિદુર્વણ કરવાને સમર્થ હોય છે? महावीर प्रभुनी उत्तर-"एगत्तं पि पभू विउव्वित्तए, पुहुत्तं वि पभू विउवित्तए " गौतम ! हेपाधि पातानी वैयिति द्वारा मे ३५नु पण નિર્માણ કરી શકે છે અને અનેક રૂપનું નિર્માણ પણ કરી શકે છે. પરંતુ " णोचेवणं संपत्तीए विउबिसु वा विउव्विंति वा, विउविस्संति वा" तेभारे પિતાની વૈયિશક્તિ દ્વારા પહેલાં કદી પણ એવાં વૈક્રિય રૂપની નિષ્પત્તિ કરી નથી, વર્તમાન કાળમાં પણ તેઓ એવું કરતા નથી અને ભવિષ્યમાં પણ એવું શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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