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________________ - - भगवतीसूत्रे अष्टाभिर्वर्षः, अष्टवर्षस्यैव प्रव्रज्याईत्वात्। गौतमः पृच्छति-' देवाहिदेवाणं पुच्छा' हे भदन्त ! देवाधिदेवानां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? इति पृच्छा, भगवानाह-गोयमा ! जहण्णेणं बावत्तरि वासाई, उक्कोसेणं चउरासीई पुनसयसहस्साई' हे गौतम ! देवाधिदेवानां जघन्येन द्वासप्ततिः वर्षाणि स्थितिः प्रज्ञप्ता पया महावीरस्य, उत्कृष्टेन तु चतुरशीति पूर्वशतसहस्राणि-चतुरशीति लक्षाणिस्थितिः प्रज्ञप्ता यथा ऋषभस्वामिनः, गौतमः पृच्छति-भावदेवाणं पुच्छा' हे भदन्त ! भावदेवानां कियन्तं कालं स्थितिः प्रशप्ता ? इति पृच्छा, भगवानाहकरने की अपेक्षा से कही गई है। पूर्वकोटि में जो देशोनता कही गई है वह सातिरेक आठवर्ष कम होने की अपेक्षा से कही गई है क्योंकि सातिरेक आठवर्ष के पहिले जीव में चारित्र धारण करनेकी योग्यता नहीं आती है-सातिरेक आठवर्ष के होने पर ही आती है अर्थात् गर्भ के समय को मिलाकर नौ वर्ष के होने पर ही आती है। ___अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं- देवाहिदेवाणं पुच्छा' हे मन्त ! देवाधिदेवों की स्थिति कितने काल की होती है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- गोयमा' हे गौतम ! 'जहण्णेणं बावतरि वासाइं, उकोसेणं चउरासीइं पुषसयसहस्साई, देवाधिदेवों की जघन्य से स्थिति ७२ वर्ष की होती है जैसे महावीर स्वामी की तथा उत्कृष्ट से स्थिति चौरासी लाख पूर्व की होती है जैसे-ऋषभदेव भगवान् की। ____ अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-' भावदेवाणे पुच्छा' हे भदन्त ! भावदेवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? उसके કેટિમાં આઠ વર્ષ ઓછાં થવાને કારણે કહેવામાં આવી છે, કારણ કે આઠ વર્ષની ઉમર થયાં પહેલાં જીવમાં ચારિત્ર ગ્રહણ કરવાની જોગ્યતા સંભવતી નથી આઠ વર્ષના થયા બાદ જ તેનામાં ચારિત્રગ્રહણ કરવાની ગ્યતા આવે છે. गौतम स्वामीना प्रश्न-“देवाहिदेवाणं पुच्छा" मग ! वाधिદેવાની સ્થિતિ કેટલા કાળની કહી છે? मडावी२ प्रभुनी उत्त२-:' जहण्णेणं बाबत्तरि वासाई, उक्कोसेणं चउरासीई पुव्यसयसहस्साई" गौतम ! हेवाधिवानी न्यस्थिति ७२ वर्षना डाय છે, જેમ કે મહાવીર સ્વામીની આયુસ્થિતિ ૭૨ વર્ષની હતી, અને દેવાધિદવેની ઉત્કૃષ્ટસ્થિતિ ચેર્યાસી લાખ પૂર્વની હોય છે. જેમ કે ઋષભદેવ ભગવાનનું આયુષ્ય ૮૪ લાખ પૂર્વનું હતું. गौतम स्वामीना प्रश्न-" भावदेवाणं पुच्छा" भगवन् ! मापवानी રિથતિ કેટલા કાળની કહી છે? શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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