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________________ - ३२० भगवतीसूत्रे रितिभावः । उत्कृष्टेन तु त्रीणि पल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता उत्तरकुर्वादि मनुजादीनां देवेष्योत्पादात् , ते च भव्यद्रव्यदेवाः सन्ति, अत स्तेषा मुत्कर्षतः त्रीणि पल्योपमानि स्थितिरिति भावः । गौतमः पृच्छति-'नरदेवाणं पुच्छा ?' हे भदन्त ! नरदेवानां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? इति पृच्छा, भगवानाह'गोयमा ! जहन्नेणं सत्सवाससयाई, उकोसेणं चउरासीई पुखसयसहस्साई' हे गौतम ! नरदेवानां चक्रवादीनो जघन्येन सप्तवर्षशतानि स्थितिः प्रज्ञप्ता, यथाब्रह्मदत्तस्य प्रतिपादिता, उत्कृष्टेन तु चतुरशीति पूर्वशतसहस्राणि-चतुरशीतिलक्षपूर्वाणि स्थितिः प्रज्ञप्ता, यथा भरतस्य प्रतिपादिता। गौतमः पृच्छतिअन्तर्मुहूर्त की कही गई है। तथा उत्कृष्ट से जो इसकी स्थिति तीन पल्योपम की कही गई है उसका कारण यह है कि उत्तरकुरु आदि में वहां के मनुष्य तिर्यचों की उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपम की होती है एवं वे मरकर नियम से देवरूप से ही उत्पन्न होते हैं। ये उत्तरकुरु आदि के जीव भव्यद्रव्यदेव हैं-इसलिये, कि ये देवों में ही उत्पन्न होने वाले होते हैं-अन्यत्र नहीं। ___अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-' नरदेवाणं पुच्छा' हे भदन्त ! नरदेवों की स्थिति कितने काल की होती है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं'गोयमा' हे गौतम ! 'जहण्णेणं सत्तवाससयाई, उक्कोसेणं चउरासीई. पुव्वसयसहस्साई' चक्रवर्ती रूप नरदेवों की स्थिति जघन्य से सातसौ वर्ष की कही गई है, जैसी कि ब्रह्मदत्तचक्रवर्ती की और उत्कृष्ट से इनकी स्थिति चौरासी लाखपूर्व की कही गई है-जैसी कि भरतचक्रवर्ती की. હતના આયુષ્યવાળાં પંચેન્દ્રિયતિય દેવામાં ઉત્પન્ન થઈ જાય છે. તેમની ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ ત્રણ પાપમની કહેવાનું કારણ એ છે કે ઉત્તરકુરુ આદિમાં મનુષ્યતિયાની ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ ત્રણ પલ્યોપમની હોય છે, અને તેઓ મરીને નિયમથી જ દેવ રૂપે ઉત્પન્ન થાય છે. આ ઉત્તરકુરુ આદિના જીને ભવ્યદ્રવ્યદેવે જ ગણવામાં આવે છે, કારણ કે તેઓ મરીને દેવામાં જ ઉત્પન્ન થાય છે–અન્ય ગતિમાં ઉત્પન્ન થતા નથી गौतम स्वाभान प्रश्न-" नरदेवाणं पुच्छा" सगवन् ! नरवानी સ્થિતિ કેટલા કાળની કહી છે? महावीर प्रभुन। उत्त२-" गोयमा!" गौतम ! “जहाणेणं सत्तवा. ससयाई, उक्कोसेणं चउरासीई पुव्वसयसहस्साइं" या माहि३५ नरवाना જઘન્ય સ્થિતિ ૭૦૦ વર્ષની અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ ૮૪ લાખ પૂર્વની કહી છે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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