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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० ९ सू० २ देवोत्पत्तिनिरूपणम् ३१७ देवाधिदेवाः खलु वैमानिकेषु सर्वेषु द्वादशस्वपि सौधर्मेशानायच्युतान्तेभ्य उद्देश्य उपपद्यन्ते, यावत्-नवौवेयकेभ्यः, पश्चानुत्तरौपपातिकेभ्यः, सर्वार्थसिद्धपर्यन्तेभ्यथोवृत्योपपद्यन्ते, शेषाः असुरकुमारादि भवनपतिवानन्यन्तरज्योतिषिकाः मतिषेधयितव्याः, एतेभ्यो भवनपत्यादि ज्योतिषिकान्तेभ्यो देवेभ्यः उदवृत्त्य देवाधिदेवा नोपपद्यन्ते इति भावः। गौतमः पृच्छति-'भावदेवाणं भंते ! कमोहितो उववज्जति ?' हे भदन्त ! भावदेवाः खलु केभ्य आगत्य उपपद्यन्ते ? किं नैरयिकेभ्यः ? इत्यादि प्रश्नः स्वयमूहनीयः, भगवानाह-एवं जहा वकंतीए भवणवासीणं उबवाओ तहा भाणियव्यो' हे गौतम ! एवम्-पूर्वोक्तरीत्या, यथा व्युत्क्राप्रभु कहते हैं- वेमाणिएस्तु सब्वेसु उचचज्जंति, जाव सव्वट्ठसिद्धत्ति सेसा खोडेयव्या' हे गौतम ! सौधर्मादि १२ देवलोकों में से यावत् नवप्रैवेयकों में से, सर्वार्थसिद्ध पर्यन्त के पांच अनुत्तरों में से आकरके देवाघिदेव उत्पन्न होते हैं असुरकुमारादि भवनपति में से, वानव्यन्तर में से एवं ज्योतिषिकों में से आकरके देवाधिदेव उत्पन्न नहीं होते हैं। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'भावदेवाणं भंते! कओहितो उववज्जति' हे भदन्त ! भावदेव कहां से आकरके उत्पन्न होते हैं ? क्या नैरयिकों में से आकरके उत्पन्न होते हैं ? या तिर्यश्च योनिकों में से आकरके उत्पन्न होते हैं ? या मनुष्यों में आकर के उत्पन्न होते हैं ? या देवों में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-' एवं जहा वकंतीए भवणवासीणं उपवाओ तहा भाणियव्यो' हे महावीर प्रसुन उत्तर-“गोयमा!" गीतम! "वेमाणिएसु सव्वेसु उवयजंति, जाव सव्वद्वसिद्धत्ति, सेसा खोडेयव्या' सीधम मा पार पक्षમાંથી, નવરૈવેયકમાંથી, અને સર્વાર્થસિદ્ધ પર્યન્તના પાંચ અનુત્તરમાંથી આવીને જીવો દેવાધિદેવ રૂપે ઉત્પન્ન થઈ શકે છે, પરંતુ ભવનપતિ, વાનવ્યતર અને તિષિક દેવમાંથી નીકળીને દેવાધિદેવ રૂપે ઉત્પન્ન થતા નથી, गौतम स्वामीन। प्रश्न-" भावदेवाणं भंते ! कओहितो उववज्जति ?' 3 ભગવન્! કઈ ગતિના છ ભાવદેવ રૂપે ઉત્પન્ન થાય છે? શું નારકમાંથી આવીને છ ભાવદેવ રૂપે ઉત્પન્ન થાય છે? કે તિયામાંથી આવીને ભાવદેવ રૂપે ઉત્પન્ન થાય છે કે મનુષ્યોમાંથી આવીને ભાવદેવ રૂપે ઉત્પન્ન થાય છે કે દેશમાંથી આવીને ભાવદેવ રૂપે ઉત્પન્ન થાય છે? मडावी२ प्रभुनउत्त२-" एवं जहा वक्तीए भवणवासीणं उबवाओ तहा भाणियव्यो" 3 गौतम ! प्रज्ञापन सूत्रन ४४॥ ५४i मसुरमा२ मावि શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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