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________________ - -- २४२ भगवतीसूत्रे कालेणं' इत्यादि। 'तेणं कालेणं, तेणं समरणं जाव एवं क्यासी'-तस्मिन् काले, तस्मिन् समये, यावत्-राजगृहे नगरे स्वामी समवसृतः, धर्मकथां श्रोतुं पर्षत् निर्गच्छति, धर्मकयां श्रुत्वा प्रतिगता पर्षत , ततो विनयेन शुश्रूषमाणो नमस्यन् गौतमः पाञ्जलिपुटः पर्युपासीनः, एवं-वक्ष्यमाणप्रकारेण, अवादीत-के महालए गं भंते ! लोए पण्णत्ते ? ' हे भदन्त ! कियन्महालयः-कीरगूविशालः खलु लोकः प्रज्ञप्तः १ भगवानाह-गोयमा! महइमहालए लोए पण्णत्ते' हे गौतम ! महातिमहालया-अति विशालः लोकः प्रज्ञप्तः। तमेव लोकविस्तारमाह-'पुरथिमेणं हैं, अत: लोकांश में जीव के जन्ममरण की वक्तव्यता का कथन सूत्रकार ने इस सूत्र द्वारा किया है, इसमें गौतम ने प्रभु से जिस समय जो पूछा है-उस समय के प्रसङ्ग को प्रकट करने के लिये सूत्रकार कहते हैं'तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव एवं वयासी' उस काल और उस समय में यावत् राजगृह नगर में महावीर स्वामी पधारे उनसे धर्मकथा को सुनने के लिये परिषदा-जनसमूह-अपने २ घर से निकली धर्मकथा को सुनकर वह विसर्जित हो गई, तब विनय से दोनों हाथ जोड़कर प्रश्न पूछने की अभिलाषावाले गौतम ने प्रभु को नमस्कार कर, इस प्रकार उनसे पूछा-'के महालए णं भंते ! लोए पण्णत्ते 'हे भदन्त ! कैसा विशाल यह लोक कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभु ने कहा'महइमहालए लोए पण्णत्ते' हे गौतम ! यह लोक अतिविशाल कहा गया है ? इस लोकविस्तार को अब मूत्रकार प्रकट करते हैं-'पुरथिमेणं, ગૌતમ સ્વામીએ કયારે આ વિષયને અનુલક્ષીને પ્રશ્ન પૂછે તે, તે नीयन। सूत्र द्वारा प्रगट ४२पामा भावेद छ-" तेणं कालेणं तेणं ममएणं जाव एवं बयासी " " ॥णे मन त समये २ नामे नगर " ॥ કથનથી શરૂ કરીને “ ગૌતમ સ્વામીએ આ પ્રમાણે પૂછયું ” ત્યાં સુધીનું સમસ્ત પૂર્વોક્ત કથન અહીં ગ્રહણ કરવું જોઈએ એટલે કે રાજગૃહ નગરમાં મહાવીર પ્રભુનું આગમન પરિષદનું વંદણું નમસ્કાર માટે ગમન-ધર્મકથા શ્રવણ કરીને પરિષદનું વિસર્જન અને ત્યાર બાદ ધર્મતત્વને જાણવાની જિજ્ઞાસાવાળા ગૌતમ સ્વામીને આ પ્રકારને પ્રશ્ન-આ સમસ્ત કથન અહીં ગ્રહણ ४२७ नये. “के महालएणं भंते ! लोए पण्णत्ते" मा ! माने કેટલે વિશાળ કહ્યો છે ? महावीर प्रभुन। उत्तर-" महइमहालए लोए पण्णत्ते?" गौतम! 21 લેકને અતિવિશાળ કહ્યો છે. તેના વિસ્તારનું હવે વર્ણન કરવામાં આવે છે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૦
SR No.006324
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 10 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages735
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size43 MB
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