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________________ भगवतीस प्रत्यर्पयन्ति, 'तएणं सा मियाबई देवी जयंतीए समणोवासियाए सद्धिं बहाया कय. बलिकम्मा जाब सरीरा बहूहिं खुज्जाहि जाव अंतेउराओ निग्गच्छइ' ततः खल सा मृगावती देवी जयन्त्या श्रमणोपासिकया सार्द्धम, स्नाता-कृतस्नाना, कृत. बलिकर्मा, दत्तवायसाधन्ना यावत्-अल्पमहाधोभरणालंकृतशरीरा, बहीभि:अनेकाभिः, कुब्जामिः, यावत्-दासीभिः सह परिता अन्तःपुरातू निर्गच्छति, 'निग्गच्छित्ता, जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला, जेणेव धम्मिए जाणप्पवरे, तेणेव उपागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव दुरूढा' अन्तःपुरात् निर्गत्य, यत्रैव बाह्या उपस्थानशाला आसीत् यत्रैव धार्मिकं यानप्रवरम् आसीत् , तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य, यावत्-धार्मिकं यानप्रवरम् आरूढा-आरूढवती । 'तएर्ण सा मियावई देवी 'तएण सा मियावई देवी जयंतीए समणोवासियाए सद्धिं नहाया, कयवलिकम्मा जाव सरीरा बहहिं खुज्जाहिं जाव अंतेउराओ निग्गच्छइ, इसके बाद वह मृगावती देवी जयन्ती श्रमणोपासिका के साथ स्नान करके और काकादि के लिये अन्नदेने रूप बलिकर्म करके यावत् अल्प भार वाले आभूषणों से जो कि बहुत अधिक कीमत के थे अपने शरीर को अलंकृत करके अनेक कुब्ज दासियों से युक्त होकर अंतःपुर से निकली-'निग्गच्छित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्टाणसाला, जेणेव धम्मिए जाणप्पवरे तेणेव उवागच्छइ' निकलकर वह जहां बाहर में उपस्थानशाला थी और जहां वह धार्मिक यान प्रवर था वहां पर आई 'उवागच्छित्ता जाव दुरूढा' वहां आकर वह उस धार्मिक यान प्रवर पर सवार हो गई 'तएणं सा मियावई देवी जयंतीए समणोवासियाए युभने २. पातनी भृगावती वीर ५५२ माथी. “ तएणे सा मियावई देवी जयंतीए समणोवासियाए सद्धिं व्हाया, कयबलिकम्मा जाव सरीरा बहूहि खुज्जाहिं जाव अंतेउराओ णिगच्छइ" त्या२ मा भृगावती हेपी यती શ્રમણે પાસિકા સાથે સ્નાન કર્યું, વાયસેને અન્ન દાન દેવારૂપ બલિકર્મ આદિ પૂર્વોક્ત ક્રિયા કરી ત્યાર બાદ વજનમાં હલકાં પણ અતિ મૂલ્યવાન આભૂષણથી પિતાના શરીરને વિભૂષિત કરીને, અનેક કુજ દાસીએથી વીંટળાયેલી એવી તે મૃગાવતી દેવી જયન્તી શ્રાવિકા સાથે અંતઃપુરમાંથી मार नीजी. " णिग्गच्छित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला, जेणेव धम्मिए जाणपवरे तेणेव उवागच्छइ" त्यांची नाणीने मान्य 6५स्थान (सलाभ७५) ती अने न्यायामि श्रे०४ यान तु, त्यो त पडेयी "उवागच्छित्ता जाव दुहढा" त्याने ते ४यती श्राविका साथे त डी. “तएण શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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