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________________ ७०१ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२० १ सू० ४ शङ्खश्रावक बरितनिरूपणम् वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत्- 'पभूणं भंते! संखे समगोत्रासए देवाणुप्पियाणं अंतिए ! सेसं जहा इसिभद्दपुत्तस्स जाव अंतं काहि' हे भदन्त ! प्रभुः समर्थः खलु किम् शङ्खः श्रमणोपासकः देवानुप्रियाणाम् अन्तिके पव्रज्यां ग्रहीतुम् ? भग वानाह - हे गौतम! शेषं सर्वं यथा एकादशशतके द्वादशोदेश के ऋषिभद्रपुत्रस्य प्रतिपादनम् कृत तथैव अस्यापि शङ्खस्य प्रतिपादनं कर्तव्यम् यावत् सर्वदुःखानामन्तं करिष्यति तथाच - यथा ऋषिभद्रपुत्र - श्रमणोपासकः बहुभिः शीलव्रत - गुणव्रत - विरमण - प्रत्याख्यान - पौषधोपवासैः यथा प्रतिगृहीते स्तपः कर्मभिः आत्मानं भावयन् बहूनि वर्षाणि श्रमणोपासकपर्यायं पालयित्वा मासिक्या संलेखनया नमस्कार किया, वन्दना नमस्कार करके फिर उन्हों से ऐसा पूछा - 'पभू णं भंते ! संखे समणोवासए देवाणुप्पियाणं अंतिए, सेस जहा इसिभद्दपुत्तस्स जाव अंतं काहिइ ' हे भदन्त ! श्रमणोपासक शेख आप देवानुप्रिय के पास क्या दीक्षित होकर के यावत् समस्त दुःखों का अन्त करेगा ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - हे गौतम! ऋषिभद्रपुत्र की तरह इनके विषय में भी कथन जानना चाहिये इनका प्रतिप्रादन ग्यारहवें शतक के बारहवें उद्देशक में किया गया है। इस प्रकार से जैसा उन्होंने समस्त दुःखों का अन्त किया है उसी प्रकार से ये शख श्रमणोपासक भी समस्त दुःखों के अंत कर्त्ता होंगे। तात्पर्य कहने का यह है कि जिस प्रकार से श्रमणोपासक ऋषिभद्र पुत्र धारण किये हुए अनेक शीलव्रत, गुणव्रत, विरमण, प्रत्याख्यान और पौषधोपवासों से आत्मा को भावित करते हुए अनेक वर्षों से श्रमणोपासक पर्याय का पालन करते आरहे हैं और पालन करके वे मासिकी संलेखना धारण DONDO "( पभूण भंते! संखे समणावासए देवाणुप्पियाण अंतिए, सेसं जहा इसि - भद्दपुत्तरस जाव अंत काहिइ " हे भगवन्! शु श्रम पास श આપ દેવાનુપ્રિયની પાસે દીક્ષિત થઇને (યાવત્) સમસ્ત દુ:ખાના અંત કરશે ? ઉત્તર-હા, ગૌતમ ! ઋષિભદ્રપુત્રના વિષયમાં જેવું કથન કરવામાં આવ્યું છે, એવુ' જ કથન શંખ શ્રાવક વિષે પણ સમજવુ. અગિયારમાં શતકના ભારમાં ઉદ્દેશકમાં ઋષિભદ્રપુત્રનું વધુ ન કરવામાં આવ્યું છે. તે જેવી રીતે નિર્વાણુ પામ્યા, એવી જ રીતે શંખ શ્રાવક પણ દીક્ષા લઈને અનેક તપાની આરાધના કરીને નિર્વાણ પામશે આ કથનનુ તાત્પર્ય એ છે કે જે પ્રકારે શ્રમ@ાપાસક ઋષિભદ્ર પુત્ર ધારણ रेखा अनेक शीसव्रत, शुशुक्त, विरभणु, પ્રત્યાખ્યાન અને પોષપવાસ વડે આત્માને ભાવિત કરતા થકા અનેક વર્ષની શ્રમણેાપાસક પર્યાયનું પાલન કરી રહ્યા છે, અને પાલન કરીને એક માસના સથારા કરીને અનશન દ્વારા ૬૦ ભકતાનુ' છેદન કરીને શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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