________________
७००
----
भगवतीसरे वन्दन्ते, नमस्यन्ति, 'वंदित्ता, नमंसित्ता एयम8 मम्मं विणएणं भुज्जो भुज्जो खामेंति' वन्दित्वा, नमस्यित्वा, एतमर्थ-सम्यक्तया, विनयेन भूयोभूयः-वारंवारं समयन्ति । 'तएणं ते समणोवासगा सेसं जहा आलभियाए जाव पडिगया' ततः खलु ते श्रमणोपासकाः शेषं यथा आलभिकायाम् एकादशशतकस्य द्वादशोद्देशके तया यावत्-प्रतिगताः, 'भंते त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीर', बंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता, एवं वयासी'-ततः खलु हे भदन्त ! इति सम्बोध्य भगवान् गौतमः श्रमणं भगवन्तं महावीर वन्दते, नमस्यति, वन्दित्वा, नमस्यित्वा, एवंबैठे थे वहां पर आये 'उवागच्छित्ता संखं समणोवासगं वंदति, नर्मसंति' वहां आकरके उन्हों ने सब से पहिले शंख श्रमणोपासक को वन्दना की और नमस्कार किया 'वंदित्ता नमंसित्ता एयम४ सम्म विणएणं भुज्जो २ खामेंति' वन्दना नमस्कार कर फिर उन्हों ने अपने छारा हुए अविनयरूप दोष की बडे ही विनम्र भावों से ओतप्रोत होकर क्षमायाचना की 'तएण ते समणोवासगा सेस जहा आलभियाए जाव पडिगया' इसके आगे का कथन जैसा आलभिका नगरी के श्रमणोपासकों के विषय में किया गया है-वैसा ही इनका कथन जानना चाहिये । तात्पर्य यही है कि फिर ये सब अपने २ घर पर चले आये इसके बाद 'भंते ! त्ति भगवं गोयमे समण भगवौं महावीरं बंद, नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी' भगवान गौतम ने हे भदंत! इस प्रकार से संबोधित करते हुए श्रमण भगवान महावीर को वन्दना से भने । ४३१ नम२४४२ ४ा. “वंदित्ता नमंसित्ता सम्म' विणएण भुज्जो २ खामेति" वयानमार शन तभी पताना द्वारा ४२राये અવિનયરૂપ દોષને માટે ઘણુજ વિનમ્ર ભાવે, વારંવાર ક્ષમા યાચી.
"तएण ते समणोवासगा संखं जहा आलभियाए जाव पडिगया" त्यार બાદ તેઓ શંખ શ્રાવક પાસેથી વિદાય થઈને પિતપોતાને ઘેર ગયા આ વિષયને અનુલક્ષીને આલભિકા નગરીના શ્રાવકના વિષયમાં જેવું કથન કરવામાં આવ્યું છે, એવું જ કથન અહીં પણ ગ્રહણ કરવું ત્યાર બાદ શુ બન્યું તે હવે પ્રકટ કરવામાં આવે છે
___“ भंते ! ति भगव गोयमे समण भगव' महावीर' वंदइ नमसइ, वंदित्ता, नमंसित्ता एवं' वयासी” “समन्" मा रे साधन ४शन मग. વાન ગૌતમે શ્રમણ ભગવાન મહાવીરને વંદણ કરી અને નમસ્કાર કર્યા. વંદણનમસ્કાર કરીને તેમણે તેમને આ પ્રમાણે પૂછયું
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯