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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० १ सू० ३ शङ्खश्रावकचरितनिरूपणम् ६९१ जागरिका-जागरणं, प्रज्ञप्ता ? भगवानाह-गोयमा ! तिविहा जागरिया पण्णत्ता' हे गौतम ! त्रिविधा-त्रिप्रकारा जागरिका प्रज्ञप्ता, तभेदानाह-'तंजहा-बुद्धजागरिया, अबुद्धजागरिया, मुदक्खुजागरिया' तद्यथा-बुद्धजागरिका, अबुद्धनागरिका, सुदृष्टजागरिका, गौतमस्तकारणं पृच्छति-' से केपटेणं भंते एवं बुच्चइ-तिविहा जागरिया पण्णत्ता, तंजहा-बुद्धजागरिया, अबुद्धजागरिया, सुदक्खु जागरिया?' तत्-अथ, केनार्थेन-कथं तावत् , एवम्-उक्तरोत्या, उच्यते यत्-त्रिविधा जागरिका प्रज्ञप्ता, तघथा बुद्धजागरिका, अबुद्धजागरिका, मुदृष्ट जागरिका इति ? एतासां तिसृणां जागरिकाणां कोऽर्थः? इति प्रश्नः, भगवानाह'गोयमा ! जे इमे अरिहंता भगवंता, उप्पन्ननाणदसणधरा जहा खंदए जाव करके फिर इस प्रकार से पूछा-'कइविहा णं भंते ! जागरिया पण्णत्ता' हे भदन्त ! जागरिका कितने प्रकार की कही गई है ? उत्तर में प्रभु ने कहा-'गोयमा' हे गौतम ! 'तिविहा जागरिया पण्णत्ता' जागरिका तीन प्रकार की कही गई है। ' तंजहा' जो इस प्रकार से है-'बुद्धजा. गरिया, अबुद्धजागरिया, सुदखुजागरिया' बुद्धजागरि का, अबुद्धजागरिका और सुदर्शनजागरिका-सुदृष्ट जागरिका अब गौतम इन भेदों के कहने का कारण पूछते हैं-'से केणद्वेण भंते ! एवं बुच्चह, तिविहा जागरिया पण्णता-तंजहा-बुद्ध जागरिया, पण्णत्ता-तंजहाबुद्धजागरिया, अधुद्वजागरिया, सुक्खुजागरिया' हे भदन्त ! बुद्धजागरिका, अबुद्धजागरिका और सुदृष्ट जागरिको के भेद से जो आपने जागरिका के ये तीन भेद कहे हैं सो इसमें कारण क्या है ? अर्थात् इन तीन जागरिकाओं का शब्दार्थ क्या है ? मडावीर प्रभुन। उत्त२- गोयमा ! ७ गौतम ! “तिविहा जागरिया पण्णत्ता" MORE य २नी ४४ी छ. “ तंजहा " ते १५ ५२। नाये प्राय छ-"बुद्ध जागरिया, अबुद्धजागरिया, सुदक्खुजागरिया " (१) मुद्ध જાગરિકા, (૨) અબુદ્ધ જાગરિકા અને (૩) સુદણ જાગરિકા આ ભેદનું સ્વરૂપ જાણવાની જિજ્ઞાસાથી ગૌતમસ્વામી મહાવીરપ્રભુને આ પ્રમાણે પ્રશ્ન પૂછે छे-" से केणद्वेण भंते ! एवं वुच्चइ तिविहा जागरिया पण्णत्ता-तंजहा बुद्धजारारिया, अबुद्धजागरिया, सुदक्खुजागरिया " है सावन् ! सुद्धगरिक, અબુદ્ધ જાગરિકા અને સુદેષ્ઠ જાગરિકાના ભેદથી આપે જાગરિકાના જે આ ત્રણ ભેદે કહ્યા છે, તેનું કારણ શું છે? એટલે કે આ ત્રણે પ્રકારની જાગરણાનું સ્વરૂપ કેવું છે? महावीर प्रभुन। उत्तर-" गोयमा! जे इमे अरिहंता भगवंता, उप्पनना શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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