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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० १ ० २ शङ्खश्रावकचरितनिरूपणम् ६७५ 'पासित्ता हतृह आसणाओ अब्भुढेइ' दृष्ट्वा, हृष्टतुष्टा सती, आसनाव अग्युत्तिष्ठति, सत्करार्थम् उधता भवति, अब्भुटेत्ता सत्तटुपयाई अणुगच्छइ' अभ्युत्थाय सत्कर्तु सप्ताष्टौ पदानि अनुगच्छति-सम्मुखं गच्छति, 'अणुगच्छित्ता पोक्खलि समणोवासगंवदइ, नमसइ' अनुगम्य-संमुखं गत्वा, पुष्कलिं श्रमणोपासकं वन्दते नमस्यति, 'वंदित्ता, नमंसित्ता, आसणेणं उवनिमंतेइ उवनिमंतेत्ता, एवं क्यासी' वन्दित्वा, नमस्यित्वा, आसनेन-आसनदानेन उपनिमन्त्रयति-आसने उपवेष्टुं प्रार्थयति, निमन्त्र्य, एवं-वक्ष्यमाणमकारेण अबादीत्-'संदिसंतुणं देवाणुप्पिया! किमागम णप्पयोयणं ?' भो देवानुपियाः ! संदिशन्तु-आज्ञापयन्तु खलु भवन्तः, यत् किम् भवतामत्र आगनमयोजनं वर्तते ? इति, 'तएणं से पोक्खली समणोवासए उपपलं समणोवासियं एवं वयासी'-ततः खलु स पुष्कलिः श्रमणोपासकः, उत्पलां श्रमदेखकर वह बड़ी प्रसन्न हुइ और संतुष्टचित्त होकर अपने आसन से ऊठी 'अन्भुटेता सत्तट्ठपयाई अणुगच्छह' ऊठकर वह सात आठ पैर सत्कार करने के भाव से सामने गई, 'अणुगच्छित्ता पोक्खलिं समणोवासगं बंदह, नमंसह, वंदित्ता नमंसित्ता आसणेण उवनिमंतेह' आगे जाकर उसने पुष्कली श्रमणोपासक को वन्दन किया और नमस्कार किया वन्दना नमस्कार करके फिर उसने उनसे आसन पर बैठने की प्रार्थना की 'उवनिमंतेत्ता एवं वयासी' प्रार्थना करने के बाद फिर उसने उनसे ऐसा कहा-'संदिसंतु ण देवा. गुपिया! किमागमणप्पओयणं' हे देवानुप्रिय ! आर आज्ञाकरे-किस कारण से आप यहां पधारे हैं ? 'तएणं से पोक्खली समणोवासए उप्पल समणोवासिय एवं बयासी' तब श्रमणोपासक पुष्कलीने श्रम" पासित्ता हतुट्ठ आसणाओ अब्भुट्टेइ " ते 5 मति भने सतोष पामेली ते ५ .ताना मासन ५२थी लाली ५७. 'अन्भुटेता सत्तट्रपयाई अणुगच्छइ" मासनेथी डीने ते तना सार ५२३॥ भाटे सात 48 Mi तेनी सामे 5. “ अणुगचित्ता पोव खलिं समणोवासगं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता, नमंसित्ता आसणेणं उवनिमतेइ " सामे ने तो तेन वानमा२ या. वहानम३४२ ४३शन तो तने मासन ५२ मेसवानी विनती ४३. “ उवनिमंतेत्ता एव वयासी" ०५२ ॥ तो तेने २मा प्रमाणे ४ . “ संदिसंतु ण देवाणुप्पिया ! किमागमणप्प ओयण" वानुप्रिय ! डी, शा २० मापनु' सी भागमन थयु, १ 'तएणं से पोक्खली समणोवासए उप्पल' समणो. वासियं एव' वयासी" त्यारे ते पुसी श्राप ५ श्राविकाने प्रभारी શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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