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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका २०१२ उ० १२० १ शङ्खश्रावकचरितनिरूपणम् ६५७ चेत्यम्-उद्यानम् , आसीत् , वर्णकः-अस्य चैत्यस्य वर्णनम् औपपातिकसूत्रोक्त पूर्णभद्रचैत्यवर्णनवदसेयम् । 'तत्थ णं सावत्थीए नयरीए बहवे संखप्पामोक्खासमणोवासगा परिवसंति, अडा जाव अपरिभूया अभिगयजीवाजीवा जाव विहरंति' तत्र खलु श्रावस्त्यां नगर्या बहवः शङ्खममुखाः-शङ्खममुखः-प्रधानो येषां ते तथाविधा:-श्रमणोपासकाः परिवसन्ति, आढयाः यावत्-बहुजनस्यापरिभूताः, अभिगतजीवाजीवाः जीवतत्त्वाः, यावत् उपलब्धपुण्यपापाः इत्यादि विशेषणयुक्ताः विहरन्ति-तिष्ठन्ति, 'तस्स णं संखस्स समणोवासगस्स उप्पला नाम भारिया होत्था' तस्य खलु शङ्खस्य श्रमणोपासकस्य उत्पला नाम भार्या आसीत् , 'सुकुमाल 'कोट्ठए चेइए' कोष्ठक नामका चैत्य-उद्यानथा 'वण्णओ' इसका भी वर्णन औपपातिक सूत्र में कथित पूर्णभद्र चैत्य के वर्णन जैसा जानना चाहिये। 'तस्थ णं सावत्थीए नयरीए बहवे संखप्पामोक्खा समणोवासगा परिवसंति, अड्डाजाव अपरिभूयाअभिगयजीवाजीवाजाव विहरंति' उस श्रावस्ती नगरी में जिनमें शंख श्रमणोपासक मुख्य है ऐसे अनेक श्रमजोपासक रहते थे, ये सब के सब विशेष संपत्तिशाली थे इन सब का प्रभाव भी बहुत था-किसी की भी ऐसी शक्ति नहीं थी, जो इनका थोड़ा सा भी तिरस्कार कर सके जीव और अजीव के स्वरूप को ये सब जानते थे यावत् पुण्य और पाप के फल से ये सब परिचित थे इत्यादि और भी पूर्वोक्त विशेषणों से ये युक्त थे 'तस्स णं संखस्स समणो. वासगस्स उप्पला नाम भारिया होत्था' उस शंख श्रमणोपासक की ५५ पान सभा त “कोदए चेइए" १४४ नामनु चैत्य तु. “वण्णओ" मो५पाति सूत्रमा म येत्यनुन ४२पामा मायु छे मे १४४ चैत्यनु १ - समपु. “ तत्थ णं सावत्थीए नयरीए अहवे संसप्पामोक्खा समणोवासगा परिवसंति, अट्टा जाव अपरिभूया अभिगयजीवजीवा जाव विहरति" ते आवरती नगरीमा भने श्राप:। २२ता उता. તે શ્રાવકમાં શંખ નામને શ્રાવક મુખ્ય હતું. તે શ્રાવકે ઘણા જ સમૃદ્ધિશાળી અને પ્રભાવશાળી હતા. તેમને તિરરકાર કરવાની હિંમત કોઈ પણ વ્યક્તિ કરતી નહીં તેઓ જીવ અને અજવના સ્વરૂપને સમજતા હતા. અને પુય અને પાપના ફલને પણ જાણકાર હતા. આ સિવાયના બીજા પૂર્વોક્ત વિશેષણોથી પણ તેઓ યુક્ત હતા. " तस्सणं संखस्स समणोवासगस्स उप्पला नाम भारिया होत्था"ते शम अभासने Grva नामनी मार्या उती. “सुकुमाल जाप सुरूवा, समणो भ० ८३ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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