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________________ ६०८ भगवतीसूत्रे उत्पन्नः, 'तत्थ ण अत्थेगइयाणं देवाण दस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता' तत्र खलुब्रह्मलोके करपे, अत्ये केषां देवानां दश सागरोपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता., 'तत्थ णं महब्बलस्स वि दस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता' तत्र खलु-ब्रह्मलोके कल्पे महाबलस्या पि दश सागरोपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता, एवं रीत्या भग. वान् सुदर्शनम्पति पूर्वजन्मवृत्तान्तं स्मारयन् अन्ते उपसंहरति-' से णं तुम सुदंसणा! बंभलोगे कप्पे दस सागरोवमाई दिव्वाई भोगभोगाई मुंजमाणे विहरित्ता' हे सुदर्शन ! तत् तस्मात्कारणात् , खलु निश्चयेन त्वं ब्रह्मलोके कल्पे महाबलो देवो भूत्वा दश सागरोपमानि दिव्यान् भोगभोगान भुञ्जानो विहृत्यस्थित्वा 'ताओ चेव देवलोगाओ आउक्खएणं, भवक्खणं, ठिइकखएण, अणंतरं चयं चइत्ता, इहेव वाणियगामे नयरे सेहि कुलंसि पुत्तत्ताए पञ्चायाए' तस्मात् 'तस्थणं अत्थेगइयाणं देवाणं दस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता' यहां पर कितनेक देवों की १० सागरोपम की स्थिति कही गई है। 'तत्यणं महब्बलस्स वि दस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता' इनमें महाबल की भी १० ही सागरोपम की स्थिति हुई। इस प्रकार भगवान् सुदर्शन सेठ को पूर्वजन्म का स्मरण कराते हुए अन्त में उपसंहार के रूप में उनसे कहते हैं-' से णं तुमं सुदंसणा! बंभलोगे कप्पे दस सागरोवमाइं दिव्याई भोगभोगाई मुंजमाणे विहरित्ता' हे सुदर्शन ! इस प्रकार से तुम ब्रह्मलोक कल्प में, महाबल की पर्याय का परित्याग करके देव हुए और १० सागरोपम तक वहां दिव्य भोग भोगों को भोगते रहे-बाद में 'ताओ चेव देवलोगाओ आउकग्वएणं, भवक्खएणं, ठिइकरवएणं अणं. अत्थेगइयाणं देवाणं दस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता" An पाना । देवानी स्थिति स सागरामनी ४डी छे "तत्थणं महब्बलस्स वि दस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता" मडामर ५५५ ६स साग२१५मनी स्थितिमा १३ ત્યાં ઉત્પન્ન થયો. આ રીતે મહાવીર પ્રભુ સુદર્શન શેઠને તેમના પૂર્વજન્મનું वृत्तान्त हीन, 6५२ ३५ भने २मा प्रमाणे -"से णं तुम सुदंसणा! बंभलोगे कप्पे दस सागरोवमाई दिव्वाई भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्ता' હે સુદર્શન! આ રીતે મહાબલ રૂપે મનુષ્ય ભવનો ત્યાગ કરીને, તમે બ્રહ્મલેક કપમાં દેવની પર્યાયે ઉત્પન્ન થયા હતા. દસ સાગરોપમ પ્રમાણ કાળ सुधा त्यांनी दिव्य मागोपलागार मेगवान “ ताओ चेव देवलोगाओ आउक्खएण, भवक्खएणं, ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता इहेव वाणियगामे नयरे सेट्रि શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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