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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०११ उ० ११ सू०१० सुदशनचरितनिरूपणम् ६०७ - संलेखनया आत्मानं-शरीरम् आत्मसम्बन्धात् कपायं वा 'झूसित्ता' जूषयित्वा कृशी कृत्वा पष्टिं भक्तानि, अनशनया छित्वा 'आलोइयपडिक्कते सामहिपत्ते कालमासे कालं किचा, उद्रं चंदिमसरिय जहा अंबडो जाव बंभलोए कप्पे देवत्ताए उववन्ने' आलोचितपतिक्रान्तः,-कृतालोचनप्रतिक्रमणः, समाधिसम्पन्नः, कालमासे-कालावसरे, कालं कृत्वा, ऊर्ध्वम्-उपरि चन्द्रमूर्य यथा अम्बडः औषपातिके सूत्रे प्रतिपादित स्तथैव महावलोऽपि प्रतिपत्तव्यः, यावत्-ग्रहगणनक्षत्रतारारुपाणाम् बहूनि योजनशतानि, बहूनि योजनसहस्राणि, बहूनि योजनशतसहस्राणि, बहो योजनको टीः, बही योजनकोटाकोटीः ऊर्ध्व-दरम् उत्पत्य, सौधर्मेशानसनत्कुमारमाहेन्द्रान् कल्पान् व्यतित्रज्य, ब्रह्मलोके कल्पे, देवतया बाद में एक मास की संलेखना से आत्मा को जोषित करके-अर्थात् एक मास की संलेखना धारण करके ६० भक्तों का परित्याग किया इस प्रकार अनशन द्वारा ६० भक्तों का परित्याग करके 'आलोइय पडिकते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा उडूं चंदिमसूरिय जहा अंबडो जाव बंभलोए कप्पे देवत्साए उववन्ने' उन्हों ने अपने पापस्थानों की आलोचनाकी प्रतिक्रमण किया बाद में वे समाधि को प्राप्त हुए और काल अवसर कालकर ऊर्ध्वलोक में चन्द्रमा, सूर्य तथा ग्रहगण नक्षत्र एवं तारारूपों से भी ऊपर अनेक योजनों, सैकडों योजनों, हजारों योजनों और लाखों योजनों की असंख्यात कोटाकोटि योजनों को उलङ्घन कर बहुत दर पर सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्पों को छोड़कर ब्रह्मलोक में देव की पर्याय से उत्पन्न हो गये। માસની સંખનાથી આત્માને જેષિત કરીને એટલે કે એક માસને સંથારો કરીને-૬૦ ભક્તોને (૬૦ ટંકના ભજનને) પરિત્યાગ કર્યો આ રીતે અનશન द्वारा १० महतोनी परित्याग ४शन "आलोइयपडिकते समाहियपत्ते कालमासे कालं किच्चा उड्ढं चंदिमसूरिय जहा अंबडो जाव बंभलोए कप्पे देवत्ताए उववन्ने" તેમણે પિતાનાં પાપસ્થાનની આચના કરી, પ્રતિક્રમણ (પ્રાયશ્ચિત્ત) કર્યું અને સમાધિભાવમાં લીન થઈ ગયા. આ રીતે એક માસના સંથારાને અન્ત કાળને અવસર આવતા કાળ કરીને, ઉદર્વકમાં ચન્દ્ર, સૂર્ય, ચહગણ, નક્ષત્ર અને તારાઓથી પણ ઉપર અનેક જને, સેંકડે જ ને, હજારો જન, અને લાખો જનની અસંખ્યાત કટાકેટિ એજનને પાર કરીને ઘણે જ દૂર સૌધર્મ, ઈશાન, સનકુમાર અને મહેન્દ્ર કલ્પોથી પણ ઊંચે भावासा ब्रह्मals ४८५मां वनी पर्याय उत्पन्न २६ गया. “तत्थ ण શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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