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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १० उ० २ ० १ क्रियाविशेषनिरूपणम् ४१ __ 'से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-संवुडस्स जाव सांपराइया किरिया कज्जइ ?' हे भदन्त । तत्-अथ, केनाथन एवमुच्यते यत्-संवृतस्य आत्र. बद्वारसंवरयुक्तस्य यावत् अनगारस्य वीचिपथे स्थित्वा पुरतो रूपाणि निर्णायतो, मार्गादितो रूपाणामवेक्षणादिकं कुर्वतो नो ऐपिथिकी क्रिया क्रियते. भवति, अपितु सांपरायिकी क्रिया क्रियते-भवतीति कि कारणम् ? भगगनाह'गोयमा ! जस्स णं कोहमाणमायालोमा एवं जहा सत्तमसए पढमोईसए जाव सेणं उस्सुत्तमेव रीयइ' हे गौतम ! यस्य खलु अनगारस्य क्रोधमान-माया-लोभा एवं रीत्या यथा सप्तमशतके प्रथमोद्देश के कथनानुसारं यावत् व्युच्छिन्ना नष्टा भवन्ति, तस्य खलु ऐर्यापथिकी क्रिया क्रियते-भवति, यस्य खलु पुनः क्रोधमानमाया लोभा अव्युच्छिन्ना भवन्ति, तस्य खलु सांपरायिकी क्रिया क्रियते-भवति, ____ अब गौतम प्रभुसे ऐसा पूछते हैं-से केणटेणं भंते! एवं युच्चइ संघुडस्स जाव संपराइया किरिया कजइ' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारणसे कहते हैं कि वीचिपथ में स्थित होकरके सामने के रूपों को देखने वाले तथा पीछे आदि के रूपों को देखने वाले संवृत अन गार को ऐपिथिकी क्रिया नहीं होती है - सांपरायिकी क्रिया होती है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं'गोयमा' हे गौतम ! ' जस्स णं कोहमाणमायालोभा एवं जहा सत्तमसए पढमोमिए जाव से णं उस्लुत्तमेव रीयइ' जिसके क्रोध, मान, माया और लोभ ये कषायें जैसा कि सप्तम शतक में प्रथम उद्दे. शक में कहा गया है उसके अनुसार नष्ट हो जाती है अर्थात् उदय में न हो उस अनगार के ऐपिथिकी क्रिया होती है। जिस अनगार को ये क्रोध, मान माया और लोभ कषायें नष्ट नहीं होते हैं अर्थात् उदय गौतम स्वामीना प्रश्न-" से केण ठेणं भंते ! एवं वुच्चइ संवुडस्स जाव संपराइया किरिया कज्जइ" मग ५ ॥ २णे मे ४३। छ। है વિચિપથમાં (કષાયભાવમાં) રહીને-કષાયથી યુક્ત રહીને આંગળના, પાછળનાં, આસપાસનાં, ઉપરનાં અને નીચેનાં રૂપે ને નીરખતે સંવૃત અણગાર સાંપ રાયિકી ક્રિયા કરે છે–ચર્યાપથિકી ક્રિયા કરતો નથી. महावीर प्रभुना लत्त२-"गोयमा!" गीतम! "जस्सणं काहमाणमायालोभा एवं जहा सत्तमसए पढमोद्देसए जाव से णं उस्सुत्तमेवरीयइ" ना ક્રોધ, માન, માયા અને લાભ આ કષા-સાતમાં શતકના પહેલા ઉદ્દેશામાં કહ્યા પ્રમાણે નષ્ટ થઈ ગયા હોય છે, અર્થાત્ ઉદયમાન હોય એવો અણગાર અર્યાપથિકી ક્રિયા કરે છે. પરન્તુ જે અણુગારના ક્રોધ, માન, માયા અને લોભરૂપ કષાયે નષ્ટ થયા નથી, અર્થાત્ ઉદયમાં આવ્યા નથી. તે અણગાર સાંપરાયિકી ક્રિયા કરે म. ६ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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