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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ११ उ० ११ १० ६ सुदर्शनचरितनिरूपणम् ५२१ इत्यादिरीत्या प्रतिपादितः, शशीव प्रियदर्शनो नरपतिः, मज्जनगृहात् प्रतिनिष्काम्यति, 'पडिनिक्वमित्ता, जेणेत्र बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता, सीहासणवरंति पुरस्थाभिमुहे निसीयइ' प्रतिनिष्क्रम्य-मज्जनगृहात् निर्गत्य, यत्रैव बाया बहिःस्थिता उपस्थानशाला आसीत् , तत्रैव उपागच्छति, उपागत्य सिंहासनवरे-श्रेष्ठसिंहासने पौरस्त्याभिमुखो निषीदति-उपविशति, 'निसीइत्ता अप्पणे उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए अट्ठभदासणाइं से यवत्थपच्चुत्थुयाई, सिद्धस्थगकयमंगलोवयाराई रयावेइ' निषद्य-उपविश्य आत्मनः-स्वस्य, उत्तरपौरस्त्ये दिग्भागे-ईशाणकोणे अष्टौ भद्रासनानि-उत्तमासनानि श्वेतवस्त्रप्रत्यवस्तु तानि-शुक्लबस्त्राच्छादितानि, सिद्धार्थ ककृतमङ्गलोपचाराणि सिद्धार्थ कैः सर्षपपदकुहिमतले, रमणीये, स्नानमंडपे, नानामणिरत्नभक्तिचित्रे, स्नानपीठे सुखनिषण्णः" इत्यादिरीति से कहा गया है। चारों ओर गवाक्षों से रमणीय चित्रविचित्र मणियों से सचित्र तलवाला सुंदर ऐसा तथा अनेक प्रकार के मणिरत्नों की वेलों से सचित्र स्नानपीट पर सुखपूर्वक बैठ कर स्नान किया और स्नानकरके बद्दलसे जैसे चंद्रमा बाहर निकले वैसे ही बलराजा स्नानगृहसे बाहर निकला अर्थात् चंद्रमा के तुल्य है प्यारा दर्शन जिनका ऐसे वे बल राजा उस स्नानगृहसे बाहरनिकले 'पडिनिक्खमित्ता जेणेच पाहिरिया उबट्टाणसाला तेणेव उधागच्छद' बाहर निकल कर फिर वे बाहर की उपस्थानशाला में आये ' उवागच्छित्ता सीहासणवरंसि पुरस्थाभिमुहे निसीयइ' वहां आकर वे पूर्वदिशा की तरफ मुंहकर के सिंहासन पर बैठ गये 'निसीइत्ता अप्पणे उत्तरपुरथिमे दिसीभाए अहमदासणाई सेयवस्थपच्चुत्थुयाई सिद्धस्थगकयमंगलोवयाराई रयावेह' बैठकर फिर उन्हों ने अपने से ईशानकोने में आठ भद्रासनों को जो कि सफेदवत्र से ढंके हुए थे तथा सिद्धार्थकणिरत्नऊट्रिमतले, रमणोये, स्नानमंडपे, नानामणिरत्नभक्तिचित्रे, स्नानपीठे सख. निषण्णः" स्नान शने, चन्द्रनारे प्रिय ६शन छ मेवा Aror स्नानमाथी ७२ नाय. “पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवद्वाणसाला तेणेव उवागच्छद" त्यांथा नजान पातानीमा स्थान सामान्या. " उवागच्छित्ता सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहे निसीयइ" त्या गावी દિશા તરફ મુખ રાખીને, પહેલેથી જ ત્યાં ગોઠવેલા ઉત્તમ સિંહાસન પર બેસી गया. “निसीइत्ता अप्पणो उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए अनुभद्दासणाई सेयवत्थपच्चुत्थयाई' सिद्धत्थगकयमंगलोवयाराइ स्यावेइ" सिंहासन ५२ विमान ने તેણે પિતાની ઈશાન દિશામાં આઠ ભદ્રાસને બેઠવ્યાં. તે ભદ્રાસનો સફેદ શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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