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________________ ५२० भगवतीसूत्रे 9 जाव सन्धि पियदंसणे नरवई मज्जणघराओ पडिनिक्खमई' यथा भपपातिक सूत्रपूर्वार्धे अष्टचत्वारिंशत्तमे सूत्रे अट्टनशालावर्णनं मज्जनगृहवर्णनंच प्रतिपादितं तथैवात्रापि अनशाला, तथैव मज्जनगृहंच प्रतिपत्तव्यम्, यावत् तत्र अनेकव्यायामयोग्याला नव्यामर्दन मल्लयुद्धकरणैः - इत्यादि, तत्र अनेकानि व्यायामार्थ यानि योग्यादीनि तानि तथाविधैरित्यर्थः, तत्र योग्या - गुणनिका, वल्गनम्उल्लळनम्, व्यामर्दनम् - परस्परमङ्गमोटनम् इत्यादिरीत्या व्यायामशालाव्यतिकरः प्रतिपादितः, मज्जनगृहव्यतिकरस्तु यत्रैव मज्जनगृहम् तत्रैव उपागच्छति, उपागत्य मज्जनगृहम् अनुप्रविशति, समन्ततो जालका भरमणीये विचित्रमणिरत्नकुट्टिम तले, रमणीये स्नानमण्डपे नानामणिरत्नभक्तिचित्रे स्नानपीठे सुखनिषण्णः, पियदसणे नरवई मज्जणघराओ पडिनिक्खमइ' जिस प्रकार से औपपातिक सूत्र के पूर्वार्ध में ४८ वे सूत्र में अट्टनशाला - व्यायामशाला का वर्णन आया है और स्नानगृह का वर्णन आया है उसी प्रकार से यहां पर भी इन दोनों का वर्णन जानना चाहिये यावत्-" तत्र अनेक व्यायामयोग्याबलानव्यामर्दन मल्लयुद्ध करणे " इत्यादि तात्पर्य यह है कि वहां अनेक व्यायामयोग्य आदिकों से उसने व्यायाम किया योग्या शब्द का अर्थ गुणनिका, बलान शब्दका अर्थ उल्ललन - दोड़ना, और , मदन का अर्थ परस्पर में अह्नों को भी ना है इत्यादि रीति से वाघाम का वर्णन वहां कहा गया है। तथा मज्जनगृहका वर्णन भी वहीं पर किया गया है । इस प्रकार वे बल राजा व्यायाम शाला से निकलकर स्नानगृह की ओर गये और जाकर उसमें प्रविष्ट हुए ' स्नानगृह का वर्णन " समन्ततो जालकाभिरमणीये, विचित्रमणिरश्न सव्य पियदसणे नरवई मज्जणघरालो पडिनिक्खमइ” भोपपाति सूत्रना પૂર્વાર્ધના ૪૮માં સૂત્રમાં વ્યાયામશાળા અને સ્નાનગૃહનું જેવુ વણુ ન કરવામાં આવ્યુ છે, એવું જ વર્ષોંન ખલરાજાની વ્યાયામશાળા અને તેમના સ્નાનગૃહ विषे अहीं श्रद्धालु ४२ ले४थे " तत्र अनेक व्यायामयोग्यावला नव्यामर्दनमल्लयुद्धकरणैः ” व्यायामनु प्रमाशवान अरवामां आव्यु - व्यायामशाળામાં જઈને તેણે વ્યાયામના અનેક દાવ કર્યાં, દોડવાની તથા મલ્લે સાથે कुस्ती हरवानी उसरत आहि र्या. " येोग्या ” मेट से गुयुनिअ વાન એટલે દોડવુ અને બ્યામદન ” એક બીજા'ની સાથે મંગાને ભીડાવવા રૂપ કુરતી. વ્યાયામશાળામાંથી નીકળીને તે નાનગૃહમાં આવ્યા ૌપપાતિક સૂત્રમાં स्नानगृहनं मा प्रभावशुन उयु छे-" समन्ततो जालकाभिरमणीये, विचित्रम " 66 " શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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