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________________ ४९४ भगवतीसूत्रे स्थिरलष्टपकोष्ठतपोवरसुश्लिष्टविशिष्टतीक्ष्णदंष्ट्राविडम्बितमु यम्-तत्र स्थिरौंप्रकम्परहितो, लष्टी-मनोज्ञौ, प्रकोष्ठौ-कूर्पराग्रेतनभागौ यस्य स तथा तम्, वृत्ताः-वर्तुलाः, पीवराः-स्थूलाः, मुश्लिष्टाः-सुसंबद्धाः, विशिष्टाः-श्रेष्ठाः, तोक्षणाः या दंष्ट्रास्ताभिः विडम्बित-विकरालं मुखं यस्य स तथा तम् , तथाविधम्, 'परिकम्मियजच्चकमलकोमलमाइयसोभंतल?उटुं' परिकर्मितजात्यकमल कोमल मात्रिकशोभमानलष्टोष्ठम्-परिकर्मितं-कृतसंस्कारं यज्जात्यकमलं तद्वत् कोमलौ मात्रिको-प्रमाणोपपन्नौ, शोभमानानां मध्ये लष्टौ-मनोज्ञौ. ओष्ठौ यस्य सतं तथाविधम् , 'रत्तुप्पलपत्तमउयसुकुमालतालुजीहं' रक्तोत्पलपत्रमृदुकसुकुमार तालजिहम्-तत्र रक्तोत्पलपत्रवत् मृदुकानां मध्ये सुकुमारे-अतिकोमले, तालुजिहेतालुजिहाचेति यस्य स तं तथाविधम् 'भूसागयपवरकणगतावियआवत्तायंतवट्टतडिविमलसरिसनयणं' मूषागतमवरकनकतापितावर्तायमानत्ततडिद् विमलसदृशनयनम्-मूषा-स्वर्णादितापनपात्रम् , तद्गतं यत्प्रवरकनकं, तापितम्-अग्निना तापितं सत् दाढाविडंपियमुहं ' उस सिंह के दोनों कुहनियों के अग्रतन भाग स्थिर प्रकम्परहित थे तथा लष्ट-मनोज्ञ थे, दाढ़ें उसकी वृत्त-गोल, पीवरस्थूल, सुश्लिष्ट-सुसंबद्ध, विशिष्ट श्रेष्ट और तीक्ष्ण-नुकीली थी, इससे उसका मुख विकराल बना हुआ था 'परिकम्मियजच्चकमलको. मलमाझ्यसोभंतलहउटुं' उसके दोनों ओष्ठ परिकर्मित कृतसंस्कार वाले, जात्यकमल जैसे कोमल थे, मात्रिक-प्रमाणोपेत थे एवं सुन्दर से सुन्दर पदार्थों की अपेक्षा वे मनोज्ञथे 'रत्तुप्पलपत्तमउधसुकुमालतालुजीह उसका तालु एवं जिहवा ये दोनों लालकमल के पत्ते के समान नरम-सुकुमार थे अर्थात् अतिकोमल थे, 'मूसागयपवरकगगतावियआवत्तायंतवतडिविमलसरिसनयणं' उसकी दोनों आखें मूषा. गत-स्वर्णादितापनपात्रगत, सुवर्ण के समान जो कि अग्नि के द्वारा हाना भूयान मयतन मा स्थि२ (-५ २हित) तथा अष्ट (भना) sal,, तेनी वाढ! वृत्त (n), २थूस, सुमिनट (सुसम) विशिष्ट (श्रेष्ट) मन ती ती, २0 तनु मुम वि२ मा सतु तु. “परिकम्मियजच्चकमलकोमलमाइयसोभंतल उद्ध" तना मरे 18 परिमित (कृत સંસ્કારવાળા) કમલ જેવાં કોમલ. સપ્રમાણ અને સુંદર હતા, અને તે १२ ते मना२ साndi di. “ रत्त पलपत्तमउयसुकुमालतालुजीह" તાળવું અને જીભ લાલ કમળના પાનના સમાન સુકુમાર (અતિશય નાજુક) di. “ मूसागयपवरकणगताविय आवत्तायतवट्टतडिविमलसरिसनयणं " सुप ગાળવાના પાત્રમાં ગાળવામાં આવતા સુવર્ણના જેવી તથા વિજળીના શ્રી ભગવતી સૂત્રઃ ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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