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________________ भगवतीसरे राईए वा पोरिसी भवइ' जघन्यिका-सर्वतो जघन्येन त्रिमुहर्ता-द्वादशमुहूर्तस्य दिवसादेश्चतुर्थोभागस्त्रिमुहूत्तों भवति, अतस्त्रयोमुहूर्ताः षटिका यस्यां सा तथाविधा दिवसस्य वा रात्रे वा पौरुषी भवति । सुदर्शनः पृच्छति-'जयाणं भंते ! उक्कोसिया अद्धपंचममुहूत्ता दिवसस्स वा, राईए वा पोरिसी भवइ, तयाणं कइभागमुहूत्तभागेण परिहायमाणी परिहायमाणी जहन्निया तिमुहुत्ता दिवसस्स वा, राईए वा पोरिसी भवई' हे भदन्त ! यदा खलु उत्कृष्टा अर्द्ध पञ्चममुहूर्ता सार्द्धकहा है । तथा दिनरात की सब से जघन्य पौरुषी का प्रमाण तीन मुहूर्त का है। १२ मुहूर्तवाले दिन का अथवा १२ मुहूर्तवाली रात्रि का जो चौथा भाग है वह त्रिमुहूर्तात्मक होता है । अतः सब से जघन्यपौरुषी का प्रमाण भी त्रिमुहूर्त का होता है। दो घड़ी का एक मुहूर्त होता है। इस प्रकार तीन मुहूर्त में ६ घड़ी होती है । सो चाहे जघन्य पौरुषी का प्रमाण तीनमुहूर्त का होता है-ऐसा कहिये था वह ६ घटिका रूप होता है ऐसा कहिये दोंनों एकरूप ही हैं। यह दिनरात की जघन्य पौरुषी का प्रमाण कहा । तात्पर्य कहने का यही है कि पौरुषी का अधिक से अधिक प्रमाण साढे चार मुहूर्त का होता है और कम से कम प्रमाण तीन मुहूर्त का होता है। अब सुदर्शन सेठ प्रभु से ऐसा पूछते है'जयाणं भंते! उक्कोसिया अद्धपंचममुहूत्ता, दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ' हे भदन्त ! जब दिन अथवा रोत्रि की पौरुषी का प्रमाण ४॥ साढे चार मुहूते का अधिक से अधिक होता है-अर्थात् २१६ मिनटका या नौ९ घड़ी का होना है. (तीन घंटे ३६ छत्तीस मिनट का होता है।-'तया અપેક્ષાએ ઓછામાં ઓછી લંબાઈ . મુહૂર્તની હોય છે. ૧૨ મુહૂર્તવાળા દિવસને અથવા ૧૨ મુહૂર્તવાળી રાત્રિને જે ચોથા ભાગ (પહાર) હેાય છે, તે ત્રણ મુહર્ત પ્રમાણુ હોય છે. તેથી જઘન્ય (ટૂંકામાં ટુંકે) પહોર ત્રણ મુહૂર્તને થાય છે. બે ઘડીનું એક મુહૂર્ત થાય છે. આ રીતે ત્રણ મુહૂર્તની ૬ છ ઘડિ થાય છે. તેથી જઘન્ય પહોરનું પ્રમાણ ત્રણ મુહૂર્તનું અથવા ૬ ઘડીનું સમજવું. આ દિનરાતના જઘન્ય પૌરુષી (પહેર) નું પ્રમાણ સમજવું આ સમસ્ત કથનનું તાત્પર્ય એ છે કે અધિકમાં અધિક કા મુહૂર્તને અને ઓછામાં ઓછા ૩ મુહૂર્તને એક પહેર થાય છે. सुशन शहने प्रश्न-" जयाण भने ! उक्कोसिया अद्धपंचममुहुत्ता दिवसस्स वा राईए वा पारिसी भवइ" भगवन् ! न्यारे ६१स अथवा रात्रिन। प्रत्ये। પહાર અધિકમાં અધિક કા મુહૂર્તને (૯ ઘડીને અથવા ૨૧૬ મિનિટને) થાય શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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