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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ११ उ• ११ सू० १ कालद्रव्यनिरूपणम् ४५३ पगवेलकमभूतः बहुजनस्य. अपरिभूतः-अपराजितः, एतेषामर्थः उपासकदशाङ्गसूत्रस्य मत्कृतायामगारधर्मसञ्जीवनीव्याख्यायाम् आनन्दश्रावकवर्णनप्रसङ्गे विलोकनीयः, श्रमणोपासकः श्रावकः अभिगतजीवाजी-माप्तजीवाजीवतत्वविवेकः यावत्-उपलब्धपुण्यपापः इत्यादि विशेषणविशिष्टः विहरति, औपपातिकसूत्रस्य उत्तरार्द्ध त्रिषष्टितममूत्रस्य मत्कृतायां पीयूषवर्षिणीव्याख्यायां यावत्पदसंग्राह्यानि पदानि, तदर्थाश्च विलोकनीयाः 'सामीसमोसढे जाव परिसा पन्जु वासइ' ततः स्वामी-महावीरः समवसृतः यावत् पर्षत् पयुपास्ते 'तएणं से सुदंसणे सेट्ठी इमीसे कहाए लट्टे समाणे तुढे ण्णाए कय जाच पायच्छित्ते सव्वागाय, महिष एवं गवेलकों-भेड़ों से युक्त था" किसी में भी ऐसी शक्ति नहीं थी-जो इसका पराभव (पराजय) कर सके यावत् शब्द से गृहीत इन सब पदों का अर्थ उपासक दशांगसूत्र की मेरे द्वारा कृत अगारधर्म संजीवनी व्याख्या में आनन्द श्रावक के वर्णन प्रप्त में किया गया है अतः वहीं से देख लेना चाहिये, यह सुदर्शन सेठ श्रमणो. पासक था-श्रावक था. जीव और अजीव तत्त्व का विवेक इसे प्राप्त था यावत् पुण्य और पाप के स्वरूप को यह जानता था इत्यादि विशेषणों से यह विशिष्ट था यहां यावत् शब्द से गृहीतपद और उनका अर्थ औपपातिक सूत्र के उत्तरार्द्ध के ६३वें सूत्र की पीयूष वर्षिणी टीका में लिखा गया है-सो वहां देखलेना चाहिये 'सामी समोसढे जाव परिसा पज्जु. वासह वहां महावीर स्वामी पधारे, यावत् परिषद् ने उनकी पर्युपासना की 'तएण से सुदंसणे सेट्ठी इमीसे कहाए लढे समाणे हट्ट तुढे व्हाए પ્રકરણમાં આપવામાં આવેલ છે. તે જિજ્ઞાસુ પાઠકએ તે ત્યાંથી વાંચી લેવા. તે સુદર્શન શેઠ શ્રમણોપાસક હતા-શ્રાસક હતા, તેઓ જીવ અને અજીવ તત્વના જ્ઞાતા હતા. (યાવતું) તેઓ પુણ્ય અને પાપના સ્વરૂપને સારી રીતે જાણતા હતા. અહીં “યાવત્ (પર્યન્ત) પદથી જે સૂત્રપાઠ ગ્રહણ કરવામાં આવ્યો છે, તે સૂત્રપાઠ તથા તેને વિસ્તૃત અર્થ ઔપપાતિક સૂત્રના ઉત્તરાદ્ધના ૬૩માં સૂત્રની પીયૂષવર્ષિણ ટીકામાં આપવામાં આવેલ છે. તે તે ત્યાંથી વાંચી લે. “ सामीसमोसढे जाव परिसा पज्जुवासइ" ago आम नाना इति. પલાશ ચિત્યમાં શ્રમણ ભગવાન મહાવીર સ્વામી પધાર્યા. ત્યાંના લોકોનો સમૂહ (પ્રખદા) દૂતિ પલાશ ચૈત્યમાં ગયે. તેમણે વંદણુ નમસ્કાર પૂર્વક तमनी ५युपासना ४२१. " तएण से सुदंसणे सेट्ठी इमीसे कहाए लट्ठ समाणे શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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