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भगवतीसूत्रे तेषां देवानां गतं-व्यतिक्रान्तं क्षेत्रं बहुकं भवति, अपितु अगतम्-अव्यतिक्रान्तं क्षेत्रं बहुकम्-अधिकं भवति, 'गयाउसे अगए अणंतगुणे, अगयाउसे गए अणंतभागे' गतात्-व्यतिक्रान्तात् क्षेत्रात् तत्-अगतम्-अव्यतिकान्तं क्षेत्रम् अनन्तगुणाधिकं भवति, अगतात्-अव्यतिक्रान्तात् क्षेत्रात् तत् गत-व्यतिक्रान्तं क्षेत्रम् अनन्तभागन्यूनं भवति । अन्ते भगवान् अलोकमुपसंहरन् आह-'अलोए णं गोयमा! ए महा. लए पण्णत्ते' हे गौतम ! अलोकः खलु इयन्महालयः ईदृशविशाल प्रज्ञप्तः ॥मू०२॥
लोकैकप्रदेश वक्तव्यता। मूलम्-लोमस्स णं भंते! एगमि आगासपएसे जे एगिदियपएसा जाव पंचिदियपएसा, अणिंदियपएसा अन्नमन्नबद्धा, अन्नमन्नपुट्ठा जाव अन्नमन्नसमभरघडत्ताए चिट्ठति ? अस्थि णं भंते ! अन्नमन्नस्स किंचि आवाहवा, वाबाहंवा उप्पायंति, छविच्छेदंवा करेंति ? णो इणट्रे समहे! से केणट्रेणं भंते! एवं वुच्चइ-लोगस्स णं एगंमि आगासपएसे जे एगिदियपएसा जाब चिट्रति, णत्थि णं भंते! अन्नमन्नस्स किंधि आवाहंवा जाव करेंति ? गोयमा! से जहा नामए नट्टिया सिया सिंगारागौतम ! 'नो गए बहुए, अगए बहुए उन देवों का व्यतिक्रान्त क्षेत्र अधिक नहीं है अपि तु जो अगत क्षेत्र है वह बहुत है क्यों कि 'गयाउ से अगए अणंतगुणे, अगयाउसे गए अणंतभागे' व्यतिक्रान्तक्षेत्र से अव्यतिक्रान्त क्षेत्र अनन्तगुणा अधिक है और अव्यतिक्रान्त क्षेत्र से व्यतिक्रान्तक्षेत्र अनन्तवें भाग है। अन्त में भगवान् अलोक का उपसंहार करते हुए कहते हैं 'अलोए ण गोयमा ! ए महालए पण्णत्ते' हे गौतम ! अलोक इतना बड़ा है ।सू०२॥ स०यतित (अनुवित) क्षेत्र अधि: डाय छे, ४१२९ , “ गयाउसे अगए अणतगुणे, अगयाउसे गए अणंतभागे” गत क्षेत्र (SGerत क्षेत्र) ४२di भगत ક્ષેત્ર (અનુલ્લંધિતક્ષેત્ર) અનંત ગણુ હોય છે અને અગતક્ષેત્ર કરતાં ગતક્ષેત્ર અનંતમાં ભાગ પ્રમાણુ હોય છે. અને અલોકના પ્રમાણને ઉપસંહાર કરતા महावीर प्रभु ४३ छ “अलोए ण गोयमा! ए महालए पण्णत्ते ॥3 गौतम! Rals दो मधे। विn Bहोछ. ।। सू०२ ॥
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯