________________
% 3A
प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ११ उ० १० सू० १ लोकस्वरूपनिरूपणम् ३९७ हे गौतम ! तिर्यग्लोकक्षेत्रलोको झल्लरीसंस्थितः, झल्लरीवत् संस्थितं- संस्थान यस्य स तथाविधः प्रज्ञप्तः अल्पोच्छ्रायत्वात् महाविस्तारत्वाच्च तिर्यलोकक्षेत्रलोको झल्लरीसंस्थान इत्यर्थः तदाकारो यथा-0 इति । गौतमः पृच्छति-उडलोयखेत्तलोय पुच्छा' ऊर्ध्वलोकक्षेत्रलोक पृच्छा, तथा च ऊर्ध्वलोकक्षेत्रलोकः खलु कि संस्थितः किमाकारः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह-'उड्रमुइंगाकारसंठिए पण्णत्ते' हे गौतम ! अर्बलोकक्षेत्रलोकः खलु ऊर्ध्वमुखमृदङ्गाकारसंस्थितः शरावसंपुटाकार इत्यर्थः प्राप्तः, तदाकारो यथा- इति, गौतमः पृच्छति-'लोए णं भंते ! किं संटिए पन्नत्ते? ' हे भदन्त ! लोकः खलुकि संस्थितः-कि कीदृशं संस्थितं सस्थानम् आकारो यस्य स तथाविधः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह-'गोयमा ! सुपइडगसंठिए लोए पत्ते' तिर्यग्लोकरूप क्षेत्रलोक का आकार झल्लरी के आकार जैसा है। झल्लरी ऊँचाइ में तो कम होती है, पर उसका विस्तार बहुत होता है. तियालोक भी ऐसा ही है. इसलिये इसे झल्लरी के आकार जैसा कहा गया है। अब गौतमस्वामी प्रभु से पूछते हैं-'उडुलोय खेतलोयपुच्छा' हे भदन्त ! ऊर्श्वलोक रूप क्षेत्रलोक का आकार कैसा कहा गया है? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'उड़मुइंगाकारसंठिए पण्णत्त' हे गौतम! अवलोकरूपक्षेत्रलोक का आकार ऊर्ध्वमुख कर रखे गये मृदङ्ग के आकार जैसा कहा गया है। इसका आकार टीकामें दीखाये अनुसार समझ लेवें.अब गौतमस्था. मी प्रभु से पूछते हैं-'लोए णं भंते ! कि संठिए पण्णत्ते' हे भदन्त ! लोक का आकार कैसा कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! सुपटगसंठिए लोए पण्णत्ते' हे गौतम ! लोक का आकार सुप्रतिष्ठक के હે ભગવન તિર્થંકરૂપ ક્ષેત્રલેકને આકાર ઝલરી (ઝાલર) ન જે હોય છે. ઝહલરી બહુ જાડી હતી નથી પણ તેને વિસ્તાર ઘણો જ હોય છે, તિર્યંગ્લેક પણ એ જ હોવાથી તેને આકાર ઝલરી જેવે કહ્યો છે.
गौतम स्वामीन। प्रश्न-“ उड्डलोयखेत्तलोय पुच्छा ? " डे मन ! ઉર્વિલેક રૂપ ક્ષેત્રકને આકાર કે હોય છે ?
भडावीर प्रभुना उत्तर-“ उड्डमुइंगाकारसंठिए पण्णत्ते” के गौतम! ઉર્વલેક રૂપ ક્ષેત્રલોકનો આકાર ઉમુખ સ્થિત મૃદંગના જેવું હોય છે. તે આકાર ટીકામાં આપ્યા પ્રમાણે સમજી લે.
गौतम स्वामीना प्रश्न-" लोएण भंते ! किं संठिए पण्णत्ते ?” 3 ભગવન! લેકને આકાર કે કહ્યું છે?
महावीर प्रभुने। उत्तर " गोयमा ! सुपइदुगसंठिए पण्णत्ते” हे गौतम!
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯