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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ११ उ० ९ सू३ शिवराजर्षिचरितनिरूपणम् ३६३ पूर्वोक्तरीत्या यथा जीवाभिगमे तृतीयप्रतिपत्तौ यावत्-स्वयम्भूरमण-पर्यवसानाः स्वयम्भूरमणनामकसमुद्रपर्यन्ताः अस्मिन् तिर्यग्लोके असंख्येयाः द्वीपसमुद्राः प्रज्ञप्ताः भो श्रमण ! आयुष्मन् ! __तथा चोक्तं जीवाभिगमे-'दुगुणादुगुणं पडुप्पाएमाणा २ पवित्थरमाणा ओभासमाणवीइया, बहुप्पलकुमुदनलिणसुभगसोगंधियपुंडरीयसयपत्त-सहस्सपत्त सयस. हस्सपत्तपप्फुलकेसरोववेया, पत्तेयं पत्तेयं पउमवरवेइया परिक्खित्ता, पत्तेयं पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्तोत्ति' द्विगुणद्विगुणाः प्रतिपद्यमानाः भविस्तरन्त: अवमासमानवीचयः-शोभमानतरङ्गः इति समुद्र विशेषणम् , बहूत्पलकुमुदनलिनसुभगसौगन्धिकपुण्डरीक महापुण्डरीक शतपत्रसहस्रपत्रशतसहस्रपत्रप्रफुल्ल केशरोपचिताः, बहूनाम्अनेकेनाम् उत्पलादीनाम्, प्रफुल्लानां विकसिताना यानि केशराणि तैरुपचिता व्याप्ता ये ते तथाविधाः सन्तीत्यर्थः, प्रत्येकं प्रत्येकं पनवनवेदिका परिक्षिप्ताः, प्रत्येकं प्रत्येकं वनषण्डपरिक्षिप्ता द्वीपा समुद्राश्च सन्ति, इत्यादि-सर्व तत्रत्य तृतीयप्रतिपत्तितोऽवगन्तव्यम्। गौतमः पृच्छति-'अस्थिणं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे दवाइं सवन्नाइं पि, अवन्नाइं पि, सगंधाई पि, अगंधाई पि, सरसाइं पि, अरसाइं पि, सफासाई पि, अफासाई पि, अन्नमन्नबद्धाई, अन्नमन्नमें कहा गया है. इस प्रकार से है 'दुगुणादुगणं पडप्पाएमाणा २ पविस्थरमाणा, ओभासमाणवीईया, बहुप्पलकुमुदनलिणसुभगसोगंधियपुंडरीयसयपत्ता, सहस्सपत्तसयसहस्सपत्तपप्फुल केसरोववेया, पत्तेयं पत्तेयं पउमवरवेड्यापरिक्खित्ता पत्तेय पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ता त्ति' इस पाठ में समुद्रों और द्वीपों के विषय में कथन किया गया है। 'ओभासमाणवीईया' तक के विशेषण समुद्रों के संबंध में और बाकी के विशेषण द्वीपों के संबंध में कहे गये हैं। ___ अब गौतम स्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'अस्थि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे दवाइं सवन्नाइं पि, अवन्नाई पि सगंधाई पि अगंधाई पि, सरसाइंपि अरसाइंपि, सफासाइंपि अफासाइंपि भिगम सूत्रमा मा विषयने मनुक्षीननीय प्रभाव घुछ- " दुगणा दगण पडुप्पाएमाणा २ पवित्थरमाणा, ओभासमाणवीईया, बहुप्पलकुमुदनलिणसुभग. सोगंधियपुंडरीयसयपत्ता, सहस्सपत्तसयसहस्सपत्तपप्फुलके सरोववेया,पत्तेय पत्तेय पउमवरवेइया परिक्खित्ता, पत्तेय पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ता, ति" मा સૂત્રપાઠ દ્વારા સમુદ્રો અને દ્વીપના વિષે કથન કરવામાં આવ્યું છે. " ओभासमाणवीईया " 20 विशेष पय-तन विशेषर। समुद्रीन साप અને બાકીનાં વિશેષણે દ્વીપને માટે વપરાયાં છે. गौतम स्वाभान प्रश्न-“ अत्यिण भंते ! जंबुद्दीवे दीवे दवाई सवन्नाई पि, अवन्नाइं पि, सगंधाई पि, अगंधाई पि, सरसाई पि अरसाई पि सफासाई શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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