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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ११ उ० ९ सू०२ शिवराजषिचरितनिरूपणम् ३४३ ततः खलु स शिवो राजर्षिः शेष तदेव-पूर्वोक्तरीत्यैव तृतीयषष्ठतपःपारण के विज्ञेयम् । नवरं-पूर्वापेक्षया विशेषस्तु पश्चिमाया दिशः वरुणो महाराजः प्रस्थाने प्रस्थितं शेष तदेव-पूर्वोक्तवदेव आहारम् आहरतीति । 'तए णं से सिवे रायरिसी चउत्थं छटुक्खमणं उपसंपज्जित्ताणं विहरई' ततः खलु स शिवो राजर्षिः चतुर्थम् षष्ठक्षपणं-षष्ठभक्ततपः उपसम्पध विहरति-तिष्ठति, 'तएणं से सिवे रायरिसी चउत्थ छट्ठक्खमणपारणगंसि, एवं तं चेव, नवरं उत्तरदिसं पोक्खेइ, उत्तराए दिसाए वेसमणे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवं, सेसं तं चेव जाव तो पच्छा अप्पणा आहारमाहारेइ ततः खलु स शिवो राजर्षिः चतुर्थषष्ठक्षपणपारणके, एवं रीत्या तदेव-पूर्वोक्तवदेव सर्वमुह्यम् , नवरं विशेषस्तु उत्तरपारणों के दिन का कर्तव्य उसने पूर्वोक्तरूप से ही किया यहां उसने पश्चिमदिशा के लोकपाल वरुण महाराज से ऐसा कहा-कि हे पश्चिम दिशा के लोकपाल वरुण महाराज ! तुम धर्मकार्य में प्रवृत्त हुए मुझ शिवराजऋषि की रक्षा करो बाकी का और सब इसके आगे का कथन पूर्वोक्त जैसा ही है । अन्त में उसने आहार किया 'तएणं से सिवेरायरिसी चउत्थ छटुक्खमण उवसंपजित्ताण विहरइ' इसके बाद उस शिवराजऋषिने चौथे छट्टभक्त की तपस्या स्वीकार की, 'तएणं सिवे रापरिसी चउत्थ छटुक्खमणपारणगंसि, एवं तंचेव, नवरं उत्तरदिसं पोक्खेइ, उत्तराए दिसाए वेसमणे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवं, सेसं तंचेव जाव तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारेड' उस छट्ठ भक्त तपस्या के पारणा के दिन उस शिवराजऋषिने पूर्वोक्त છઠ્ઠના પારણાને દિવસે પણ તેણે પૂર્વોક્ત પહેલા છઠ્ઠના પારણા જેવી વિધિ કરી. આ વખતે તેણે પશ્ચિમ દિશાના લેકપાલ વરુણ મહારાજને એવી પ્રાર્થના કરી કે ધર્મકાર્યમાં પ્રવૃત્ત થયેલા આ શિવ રાજર્ષિની તમે રક્ષા કરો” બાકીનું તેણે પોતે આહાર કર્યો ” આ કથન પર્યન્તનું સમસ્ત કથન मडी अब ४२वु नये. "तएण से खिवे रायरिसी चउत्थ छटुक्खमण उवसंपज्जित्ताण विहरह" त्या२ माह ते शिव २०४बिस याथा छ४ तपनी माराधन। २३४३री. "तएण' से सिवे रायरिसी छद्रक्खमणपारणगंसि, एवं तं चेव, नवरं उत्तरदिसं पोक्खेइ, उत्तराए दिसाए वेसमणे जाव तओ महाराया पत्थाणे पत्थिय अभिरक्खउ सिव', सेंस तंचेव जाव तओ पच्छा अपणा आहारमाहारेइ" मा यथा छ४ना पा२ણાને દિવસે પણ તે શિવ રાજર્ષિએ પૂર્વોક્ત સઘળી વિધિ કરી. પરન્તુ આ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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