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________________ ३४२ भगवतीसूत्रे बोध्यम् , तथा शिवं राजर्षिम् अभिरक्षतु, प्रस्थाने प्रस्थितं-धर्मसाधने प्रवृत्तं शिवं राजर्षिम् अभिरक्ष्य, यानिच तत्र दक्षिणस्यां दिशि कन्दानि च, मूलानि च, त्वचाश्च, पत्राणि च, पुष्पाणि च, फलानि च, बीजानि च, हरितानि च, वर्तन्ते, तानि अनुनानातु-ग्रहीतुम् अनुज्ञां ददातु इति कृत्वा दक्षिणां दिशं प्रसरति, प्रमृत्य यानि च तत्र कन्दादीनि हरितान्तानि सन्ति तानि गृह्णाति, गृहीत्वा तैः किदिनसांकायिक वंशमयपात्रविशेष भरति इत्यादिकं सर्व पूर्वदिशावद् अवसेयम् , अन्ते च आहारमाहरति, 'तएणं से सिवरायरिसी तच्चं छहक्खमणं उपसंपज्जित्ताणं विहरइ' ततः खलु स शिवराजर्षिः तृतीयं षष्ठक्षपणं-षष्ठभक्ततपः उपसंपद्य-स्वी. कृत्य विहरति-तिष्ठति, 'तएणं से सिवे रायरिसी सेसं तं चेव, नवरं पच्चस्थिमाए दिसाए वरुणे महाराया पत्थाणे पत्थियं सेसं तं चेव जाव आहारमाहारेइ' शिवराजऋषि की रक्षा करें इत्यादि मष कथन आगे का जैसा प्रथम पारणा के दिन में कहा गया वैसा यहां समझना चाहिये । यहां पूर्वदिशा के स्थान में दक्षिण दिशा को उच्चारण करके उसने ऐसा कहादक्षिणदिशा में जितने भी कन्द, मूल, त्वचा, पत्र, पुष्प, फल, बीज और हरित वनस्पति हैं- उन्हें लेने के लिये उस दिशा के लोकपाल हे यम महाराज मुझे आज्ञा दें। इस प्रकार कह कर वह दक्षिण दिशाकी ओर चला, वहां जाकर उसने वहाँ के कन्दादि हरितान्त पदार्थों को लिया, लेकर उसने उन्हें वंशमयपात्र विशेष में रखा, इत्यादि सब पूर्वदिशा के जैसा यहां कहना चाहिये। अन्त में उसने आहार किया 'मएणं से सिवे रापरिसी तच्चं छट्टक्खमणं उवसंजित्ता णं विहर' इसके बाद उस शिव राजऋषिने तृतीय षष्ठभक्त की आराधना की 'तएणं से सिवे रोयरिसी सेसं तंव, नवरं पच्चत्थिमाए दिसाए वरूणे महाराया पत्थाणे पस्थिय सेसं तंचेव जाव आहारमाहारेइ ' इसके આજ્ઞા માગી. ત્યાર બાદ દક્ષિણ દિશામાં પ્રયાણ કરીને તેણે કદાદિ પદાર્થો લઈને તે વાંસનિમિત પાત્રમાં મૂકયા, ઈત્યાદિ સમસ્ત પૂર્વોક્ત કથન અહીં ગ્રહણ કરવું જોઈએ. “ અને તેણે પિતે ભોજન કર્યું, ” આ કથન પર્યન્તનું સમસ્ત પૂર્વોક્ત કથન અહીં ગ્રહણ કરવું જોઈએ. "तएण ते सिवे रायरिसी तच्च छक्खमण उपसंपज्जित्ताण विहरइ" त्यार બાદ તે શિવ રાજષિએ ત્રીજા છઠની (ષષ્ઠભક્તની–બે દિવસના ઉપવાસની) माराधना १३ ४री. “सरण से सिवे रायरिसी सेस तंचेव, नवरं पच्चस्थिमाए दिसाए वरुणमहाराया पत्थाणे पत्थिय सेसं तंव जाव अहारमाहारेइ " श्रीन શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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