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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ११ उ० ९ सू०२ शिवराजर्षिचरितनिरूपणम् ३३१ ___टोका–'तएणं से सिवे राया अन्नया कयाई सोभणंसि तिहिकरणदिवसमुहुत्तनखत्तंसि विउलं असणपाणखाइमसाइमं उवक्खडावेइ' ततः खलु स शिवो राजा अन्यदा कदाचित् शोभने तिथिकरण दिवसमूहूर्तनक्षत्रे विपुलम् अशनपानखादिमस्वादिमम् उपस्कारयति-निर्मापयति 'उवक्खडावेत्ता मित्तणाइनियगसयणसंबंधिपरिजणं रायाणो य खत्तिया य आमंतेइ, आमंतेत्ता' उपस्कार्यनिर्माप्य मिरज्ञातिनिनकस्बजनसम्बन्धि-परिजनं राज्ञश्च क्षत्रियांश्च आमन्त्रयति, आमन्त्र्य 'तओ पच्छाहाए जाव सरीरे भोयणवेलाए भोयणमंतवंसि सुहासणवरगए तेणं मित्तणाइनियगसयणसंबंधिपरिजणेणं राएहिय खत्तिएहि य सद्धि' ततः 'तएणं से सिवे राया' इत्यादि । टीकार्थ-'तएणं से सिवे राया अन्नया कयाइं सोभणंसि तिहिकरणदिवसनक्खत्तमुहुर्तसि विउलं असणपाणखाइमसाइमं उव क्खडाबेइ' इसके बाद उस शिवराजा ने अन्यदा कदाचित् शुभ तिथि, शुभ करण, शुभ दिवस, शुभ नक्षत्रवाले मुहूर्त में विपुल अशन, पान, खादिम एवं स्वादिमरूप चार प्रकार का आहार तैयार करवाया, 'उवक्खडावेत्ता मित्तणाइनियगसयणसंबंधिपरिजणं रायाणो य खत्तिया य आमंतेइ, आमंतेत्ता' चारों प्रकार का आहार तैयार करवा करके फिर उसने मित्रजनों को ज्ञातिजनों को अपने जनों को सम्बन्धियों को एवं परिजनों को तथा राजाओं को आमंत्रित किया. आमंत्रित करके 'तओ पच्छा बहाए जाच सरीरे भोयणवेलाए भोयणमंडसि सुहासणवरगए तेणं मित्तणाइनियगसयणसंबंधि “तएण से सिवे राया " त्याहटीकार्थ-“तएण से सिवे राया अनया कयाई सोभणसि तिहिकरण. दिवसनक्खत्तमुहुर्तसि विउल असणपाणखाइमसाइम उवक्खडावेइ" त्यार બાદ કોઈ એક શુભ તિથિ, શુભ કરણ, શુભ દિવસ અને શુભ નક્ષત્રવાળા મુહૂર્તમાં તે શિવરાજાએ વિપુલ આહાર, પાન, ખાદ્ય અને સ્વાદ રૂપ ચાર प्रजान ला तयार ४२।०यां. “ उवरखडावेत्ता मित्तणाइनियगसयणसंवधि परिजण रायाणो य खत्तियाय आमतेइ" या२ प्रारना माहार तयार पान તેણે પિતાના મિત્રજનને, જ્ઞાતિજનોને, સ્વજનેને, સંબંધીઓને, પરિજનોને, सामान भने क्षत्रियान भवानु मात्र मा.यु. " आमतेत्ता तओ पच्छा पहाए जाव सरीरे भोयणवेलाए भोयणमंडवसि सुहासणवरगए तेण मितणाइनियगसयणसंबंधि परिजणेण राएहि य खत्तिपहि य सद्धिं " त्या२ मा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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