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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श० ११ १०५ सू० १ नालिकस्थजीवनिरूपणम् २९३ अथ पश्चमोद्देशकः प्रारभ्यते नालिकजीव वक्तव्यता। मूलम्-"नालिए णं भंते ! एगपत्तए किं एगजीवे, अणेगजीवे? एवं उद्देसगवत्तवया निरवसेसा भाणियबा, सेवं भंते! सेवं भंते ! त्ति' ॥सू० १॥ ___ छाया-नालिकः खलु भदन्त ! एकपत्रकः किम् एकजोवः, अनेकजीवः? एवं कुम्भिकोदेशकवक्तव्यता निरवशेषा भणितव्या, तदेव भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति ॥सू०१॥ ___ अथ पञ्चमं नालिकोद्देशकमाह-'नालिए णं भंते' इत्यादि, गौतमः पृच्छति 'नालिए णं भंते ! एगपत्तर कि एगजीवे, अणेगजीवे ?'-हे भदन्त ! नालिकः खलु वनस्पति विशेषः एकपत्रकः एकपत्रावस्थायां किम् एकजीवो भवति ? किंवा अनेकजीवो भवति ? भगवानाह-'एवं कुंभिउद्देसगवत्तव्वया निरवसेसा भाणियव्या' पांचवें उद्देशे का प्रारंभ नगलिका जीव वक्तव्यता'नालिएणं भंते एगपत्तए कि एगजीवे अणेगजीवे" इत्यादि टीकार्थ-सूत्रकार ने इस सूत्रद्वारा पांचवें नालिकोद्देशक को कहा है-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-'नालिए ण भंते ! एगपत्तए किं एगजीवे अणेगजीवे' हे भदन्त ! नालिका जो वनस्पति है वह जब एकपत्रावस्था में रहती है तब वह एक जीववाली होती है ? या अनेक जीवोंवाली होती है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं'एवं कुंभि उद्देगसगवत्तव्यया निरवसेसा भाणियवा' हे गौतम ! यहां પાંચમા ઉદેશાનો પ્રારંભ નાલિકરથ જીવવકતવ્યતા" नालिए णं भंते ! एगपत्तए किं एगजोवे अणेगजीवे ?” त्यादि ટીકાર્થ–સૂત્રકારે આ સૂત્ર દ્વારા પાંચમાં નાલિકે દેશકની પ્રરૂપણા કરી छ. ॥ विषयने मनुक्षीने गौतम स्वामीन। प्रश्न—“ नालिएणं भंते ! एगपत्तए कि एगजीवे, अणेगजीवे ?' 8 सन् ! नानि नामानी २ वनस्पति छ તે જ્યારે એક પત્રાવસ્થામાં હોય છે, ત્યારે તેમાં કેટલા જ રહેલા હોય છે? શું ત્યારે તેમાં એક જીવ હોય છે કે અનેક જીવ હોય છે? महावीर प्रभुन। उत्त२-" एवं कुंभि उद्देसगवत्तव्वया निरवसेना भाणियव्वा" શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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