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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ११७० १ सू० १ उत्पले जीवोत्पत्तिनिरूपणम् २७९ गौतमः पृच्छति- अह भंते ! सबपाणा, सबभूया, सबजीवा, सनसत्ता, उत्पलमूलत्ताए, उप्पलकंदत्ताए, उप्पलनालताए, उप्पलपत्तत्ताए, उप्पलकेसरत्ताए, उप्पलकन्नियत्ताए, उप्पलथिभुगताए, उववन्न पुव्वा ?' हे भदन्त ! अथ सर्वप्राणाः सर्वभूताः, सर्वजीवाः, सर्वसत्वाः, उत्पलमूलतया, उत्पलकन्दतया, उत्पलनालतया, उत्पलपत्रतया, उत्पलकेसरतया, उत्पलकर्णिकतया, उत्पलबीजकेशरतया, उत्पलथिमुगतयेति उत्पलपत्रमूलस्थानतया किम् उपपन्नपूर्वाः ? पूर्व कदाचित् उत्पन्नाः ? भगवानाह-'हंता गोयमा ! असइ अदुवा अणंतक्खुत्तो' हे गौतम ! हन्त सत्यम् सर्वमाणादय उत्पलभूतादितया असकृत्-अनेकवारम् अनन्तकृत्वः अनन्तवारम् पूर्वमुत्पन्नाः, इति त्रयस्त्रिंशत्तमं मूलादिषूपपातद्वारम् ।३३॥ ___ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'अह भंते ! सव्वपाणा, सम्वभूया, सन्यजीवा, सव्वसत्ता, उप्पलमूलत्ताए, उप्पलकंदत्ताए, उप्पलनालताए, उप्पलपत्तत्ताए, उप्पलकेसरत्ताए, उप्पलकन्नियत्ताए, उप्पलथिमुगत्ताए उववन्नपुव्वा' हे भदन्त ! क्या समस्त प्राण, समस्तभूत, समस्तजीव, समस्तसत्व, उत्पल के मूलरूप से उत्पल के कन्दरूप से, उत्पल के नालरूप से, उत्पलके पत्ररूप से, उत्सल के केशर रूप से, उत्पल की कणिका रूप से और उत्पल के थिमुगरूप से क्या पहिले कदाचित् उत्पन्न हो चुके हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'हता, गोयमा ! असई अदुवा अणंतखुत्तो' हां गौतम ! समस्त प्राणादिक उत्पल आदि रूप से अनेकवार अथवा अनन्तबार पहिले उत्पन्न हो चुके हैं । इस प्रकार से यह ३३ वां मूलादिकों में उत्पत्तिद्वार है।३३।
गौतम स्वामीना प्रश्न-“ अह भंते ! सव्वपाणा, सव्वभूया, सब जीवा, सव्व सत्ता, उप्पलमूलत्ताए, उप्पलकंदत्ताए, उप्पलनालत्ताए, उप्पलपत्तत्ताए, उप्पलकेसरत्ताए, उप्पल कन्नियत्ताए, उप्पलथिमुगत्ताए उववन्नपुव्वा ?" भगवन् ! શું સમસ્ત પ્રાણ, સમસ્ત ભૂતે, સમસ્ત જીવો અને સમસ્ત સ; ઉત્પલના મૂળ રૂપે ઉત્પલના કન્દ રૂપે, ઉત્પલની નાલ રૂપે, ઉત્પલનાં પાન રૂપે, ઉત્પલના કેશરરૂપે, ઉત્પલની કર્ણિકારૂપે અને ઉત્પલના થિભુગરૂપે પહેલાં કદી પણ ઉત્પન થઈ ચુક્યા હોય છે ખરાં?
भडापार प्रभुना उत्त२- "हंता, गोयमा ! असई अदुवा अणंतक्खुत्तो" હા, ગૌતમ! સમસ્ત પ્રાણ, ભૂત, જીવ અને સર્વે ઉત્પલના મૂળ આદિ રૂપે भने पार अथवा मनतवार पडेला Grपन्न थ युध्या डाय छ. ।। ३३॥
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯