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________________ २७८ भगवतीसूत्रे उत्पलस्था जीवाः अनन्तरम्-उत्पलजीवभवानन्तरम् उद्धृत्य कुत्र गच्छन्ति, कुत्र उत्पद्यन्ते? 'कि नेरइएसु उपयज्जति, तिरिक्खजोणिएमु उववज्जति?' किं नैरयिकेषु उपपद्यन्ते ? किंवा तिर्यग्योनिकेषु उपपद्यन्ते ? भगवानाह-' एवं जहा बकनीए उपट्टणाए वणस्मइकाइयाणं तहा भाणियब' एवं पूर्वोक्तरीत्या यया व्युत्क्रान्ति के प्रज्ञापनायाः पष्ठे व्युत्क्रान्तिपदे, उद्वर्तनाधिकारे वनस्पतिकायिकानां तिर्यग्योनिकेषु उपपद्यन्ते मनुष्येषु उपपद्यन्ते, मोक्तम्यथा-किं नैरयिकेषु उपपद्यन्ते, देवेषु उपपद्यन्ते ? गौतम ! नो नैरयिकेषु उपपद्यन्ते, तियग्योनिकेषु उपपद्यन्ते, मनुष्येषु उपपद्यन्ते इति, तथा भणितव्यम् , कहिं उववजंति' हे भदन्त ! वे उत्पलस्थ जीव उत्पल जीव रूप भवके अनन्तर मर कर कहां जाते हैं ? कहां उत्पन्न होते हैं, "किं नेर इएसु उव. वज्जति, तिरिक्ख जोणिएसु उववजति' क्या नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं, या तिर्यग्योनिकों में उत्पन्न होते हैं ? इस के उत्तर में प्रभु कहते हैं- ' एवं जहावकंतीए उवट्टणाए वणस्सइकाइयाण तहा भाणियवं' हे गौतम ! जैसा प्रज्ञापना के छठे उद्वर्तनाधिकार में वनस्पति कायिकों के विषय में कहा गया है-जैसे क्या वे नैरयिको में उत्पन्न होते हैं ? या तिर्यग्योनिकों में उत्पन्न होते हैं ? या मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं ? अथवा देवों में उत्पन्न होते हैं ? तो हे गौतम ! वे न नैरयि. कोंमें उत्पन्न होते हैं। न देवों में उत्पन्न होते हैं, किन्तु तिर्यग्योनिकोंमें उत्पन्न होते हैं, मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं-वैसा यहां कहना चाहिये। ભગવાન ! ઉત્પસ્થિ જીવ ઉત્પલ જીવ રૂ૫ ભવને છેડીને ત્યાંથી મરીને કયાં तय छ? या ५न्न थाय छे ?"" किं नेरइएमु उववज्जति, तिरिक्खजोणिएसु उववति" ते न२४गतिमा पन थाय छ तिय"यानिकीमा ઉત્પન્ન થાય છે? महावीर प्रसुना उत्त२- “ एवं जहा वतीए उवट्टण ए वणस्सइकाइयाणं तहा भाणियव्वं" गौतम प्रज्ञापनाना छ! नाघिमां बन સ્પતિકાયિકની ઉદ્વર્તન વિષે કથન કરવામાં આવ્યું છે એવું કથન અહીં પણું ગ્રહણ કરવું. ત્યાં આ પ્રમાણે કહ્યું છે ___ " गौतम स्वामीनी प्रश्न- "शुतो ना२मा उत्पन्न थाय छे તિયશામાં ઉત્પન્ન થાય છે? કે મનુષ્યગતિમાં ઉત્પન્ન થાય છે? કે દેવગતિમાં ઉત્પન્ન થાય છે? મહાવીર પ્રભુને ઉત્તર-હે ગૌતમ! તેઓ દેવામાં પણ ઉત્પન્ન થતા નથી, તારકમાં પણ ઉત્પન્ન થતા નથી, પરંતુ તિયચનિકેમાં અથવા મનમાં ઉત્પન્ન થાય છે” આ કથન ઉ૫લના જીવેને પણ લાગૂ પડી શકે છે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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