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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०११ उ०१ सू०१ उत्पले जीवोत्पातनिरूपणम् २३५ णिज्जस्स कम्मरस किं वेदगा, अवेदगा?' हे भदन्त ! ते खलु उत्पलस्था जीवा ज्ञानावरणीयस्य कर्मणः किं वेदका भवन्ति ? किंवा अवेदका भवन्ति ? भगवानाह'गोयमा ! णो अवेदगा, वेदएवा, वेदगावा, एवं जाव अंतराइयस्स' हे गौतम ! उत्पलस्था जीवाः ज्ञानावरणीयस्य कर्मणो नो अवेदका भवन्ति, अपितु उत्पलस्य एकपत्रावस्थायाम् एकत्वात् जीवो वेदको वा भवति, द्वयादिपत्रावस्थायां तु बहुत्वात् जीवा वेदका वा भवन्ति, एवं-पूर्वोक्तरीत्या यावत्दर्शनावरणीयादारभ्य आन्तरायिकपर्यन्तानां कर्मणाम् उत्पलस्था जीवा नो अवे. दका भवन्ति, अपितु उत्पलस्य एकपत्रावस्थायाम् जीवस्य एकत्वात् वेदको भवति, द्वयादिपत्रावस्थायां तु जीवानामनेकत्वात् वेदका भवन्ति इति भावः। गौतमः पृच्छति-'तेणं भंते ! जीवा कि सायावेयगा, असायावेयगा ? ' हे भदन्त ! ते खलु उत्पलवर्तिनो जीवाः किं सातावेदकाः ? भवन्ति ? किं वा असाताहैं-'तेणं भंते ! जीवा णागावरणिज्जस्स कम्मस किं वेदगा अवेदगा?' हे भदन्त ! वे उत्पलस्थ जीव क्या ज्ञानावरणीय कर्मके वेदक होते हैं या अवेदक होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा! णो अवेदगा, वेदए वा, वेदगा वा, एवं जाव अंतराइयस्म' हे गौतम! उत्पलस्थ जीव ज्ञानावरणीय कर्म के अवेदक नहीं होते हैं किन्तु उत्पल की एक पत्रा. वस्थामें एक जीव होने से वह जीव ज्ञानावरणीय कर्म का वेदक होता है, तथा दयादिपत्रावस्था में जीवों की बहुता होने से वे सब जीव ज्ञाना. वरणीय कर्म के वेदक होते हैं इस प्रकार अन्तरायतक कहदेना चाहिये। __ अब गौतम प्रभुसे ऐसा पूछते हैं-'तेणं भंते ? जीवा किसायावेयगा, असायावेयगा' हे भदन्त ! उत्पलवर्ती वे जीव क्या सातावेदनीय कर्म के वेदक होते हैं या असातावेदनीय कर्म के वेदक होते हैं ? इसके किं वेदगा अवेदगा ? ' मसन् ! ५४५ ७३। शुशाना१२०ीय भना વેદક હોય છે, કે અવેદક હોય છે? महावीर प्रभुना उत्त२-"गोयमा! णो अवेदगा, वेदएव वा, वेदगा वा, एवं जाव अंतराइयस्स” 8 गौतम ! B५०स्थ । जनाव२५ भना અવેદક હોતા નથી, પરંતુ ઉત્પલની એક પત્રાવસ્થામાં તેની અંદર રહેલે એક જીવ જ્ઞાનાવરણીય કર્મને વેદક હોય છે, તથા યાદિ પત્રાવસ્થામાં તેની અંદર રહેલા અનેક જ જ્ઞાનાવરણીય કર્મના વેદક હોય છે. એ જ પ્રમાણે આંતરાયિક પર્યન્તના કર્મોના વિષયમાં પણ સમજવું. गौतम स्वाभीनी प्रश्न-" तेण भते ! जीवा किं सायावेयगा, असायावेयगा ?" उसावन ! उत्पनाते व सातवहनीय मना र હોય છે, કે અસાતા વેદનીય કર્મના વેદક હોય છે ? શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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