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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ११ उ० १ सू० १ उत्पले जीवोत्पत्तिनिरूपणम् उपपद्यन्ते ? किंवा देवेभ्यः उपपद्यन्ते ? भगवानाह - 'गोयमा ! नो नेरइएहिंतो भगवानाह - उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो वि उववज्जंति, माणुसे हितो वि उववज्जंति, देवेहिंतो वि उववज्जंति ' हे गौतम ! द्विपत्राद्यवस्थोत्पलस्था जीवा नो नैरयिकेभ्य उपपद्यन्ने, अपितु तियग्यनिकेभ्योऽपि उपपद्यन्ते, मनुष्येभ्योऽपि उपपद्यन्ते, देवेभ्योऽपि उपपद्यन्ते, ' एवं उपवाओ भाणियव्बो, जहा चकंती वणस्स इकाइयाणं जाव ईसाणेति' एवम् उक्तरीत्या उपपातः उत्पलस्थजीवानामुत्पादो भणितव्यो वक्तव्यः, यथा प्रज्ञापनायाः षष्ठे व्युत्क्रा न्तिपदे वनस्पतिकायिकानां यावत् ईशानान्तदेवेभ्यः उपपातः उक्तस्तथैवात्रापि हैं? या तिर्थचों में से उत्पन्न होते हैं ? या मनुष्यों में से उत्पन्न होते हैं ? या देवों में से उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा' हे गौतम! 'नो रहरहितो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो वि उववज्जति, माणुसेहितो वि उववज्जेति देवेहिंतो वि उववज्जति' द्विपत्रादि अवस्थावाले उत्पल में रहे हुए जीव वहां नैरयिकों में से उत्पन्न नहीं होते हैं, किन्तु वे वहां तिथंच योनि में से भी उत्पन्न होते हैं. मनुष्ययोनि में से भी उत्पन्न होते हैं, तथा देवयोनि में से भी उत्पन्न होते हैं। एवं उबवाओ भाणियव्वो, जहा वक्कंतीए वणस्सइकाइण जाव ईसाणेसि' इस प्रकार से उत्पलस्थ जीवों का उत्पाद जैसा कि प्रज्ञापना के छठे व्युत्क्रान्तिपद में वनस्पति कायिक जीवों का उत्पाद यावत् ईशानान्त
તેમાં ઉત્પન્ન થાય છે? કે તિય ચામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? કે મનુથ્યામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય થાય છે? કે દેવામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે?
महावीर प्रलुन। उत्तर- " गोयमा ! हे गौतम! नो नेरइएहिंतो उनवजति " द्वि पत्राहि व्यवस्थावाजा उत्पसमा रहेद्या वो नारीभांथी भावीने त्यां उत्पन्न थतां नथी, " तिरिक्खजोणिएहिंतो वि उववज्जति माणुसेहिंतो बि उववज्जंति, देवेहिंतो वि उववज्जंति " परन्तु ते। तिर्यययोनिमांधी पीने પણ ત્યાં ઉત્પન્ન થાય છે, મનુષ્યાનિમાંથી આવીને પણ ઉત્પન્ન થાય છે અને દેવयोनिभांथी भावीने पशु उत्पन्न थाय छे. " एवं उबवाओ भाणियन्त्रेा, जहा वक्कतीए वइयाणं जावईाणे त्ति" मा अरे उत्पना कवना उत्पादने अनु લક્ષીને પ્રજ્ઞાપના સૂત્રના છઠ્ઠા વ્યુત્ક્રાન્તિપદ્મમાં વનસ્પતિકાયિક જીવેાના ઉત્પા•
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯