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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१० उ०५ सू०२ चमरेन्द्रादीनामग्रमहिषीनिरूपणम् १९७ ईशानलोकपाल सेोमस्य चतस्रः अग्रपहिष्यः प्रज्ञप्ताः, 'तंजहा-पुढवी १, रायी २, रयणो ३, बिज्जू ४, तद्यथा-पृथिवी १, रात्री २, रजनी ३, विद्युत् ४, 'तत्यणं एगामे गाए देवीए, सेसं जहा सक्कास लेागपालाणं' तत्र खलु चतसृषु अग्रमहिषीषु मध्ये एक हस्या देव्याः एकै देवीसहस्रं परिवारः प्रज्ञप्तः, शेषं यथा शक्रस्य लोकपालानां विषये उक्तं तथैव वक्तव्यम् तथा च ताभ्योऽयमहिषीभ्यः एकैका अग्रमहीषी अन्यत् एकैकं देवी सहस्रं परिवार विकुषितुं प्रभुः, एवमेवोक्तरीत्या चत्वारि देवी सहस्राणि परिवारो भवति तदेतत् त्रुटिकं नाम वर्ग:- समूहः उच्यते, इत्यादि पूर्वोक्तरीत्यैवावसे यम्. 'एवं जाव वरुणस्स' एवम् उक्तरीत्यैव यावत्-यमस्य, वैश्राणस्य, नरुणस्यच ईशानलोकपालत्रयस्यापि विज्ञेयम् । 'नवरं विमाणा जहा च उत्थसए, सेसं तं चे जाव, णा चेवणं मेहुण वत्तियं' नवर-विदेवेन्द्र के लोकपाल सोम की अग्रमहिषियां ४ कही गई हैं ? 'त जहा' जो इस प्रकार से हैं-'पुढवी १, रायी २, रयणी ३, विज्जू ४' पृथ्वी १, रात्री २, रजनी ३, और विद्युत् ४, 'तत्थ ण एगमेगाए देवीए, सेसं जहा सकस्स लोगपालाण' इन चार अग्रमहिषियों में से एक २ अग्रमहिषी का देवी परिवार एक २ हजार का कहा गया है। बाकी का कथन शक्र के लोकपालों के जैसा जानना चाहिये. तथा इन चार अग्रमहिषियों में से प्रत्येक अग्रमहिषी इनके अतिरिक्त और भी १-१ हजार देवी परिवार की अपनी विकुर्वणा शक्ति द्वारा निष्पत्ति कर सकती है। इस प्रकार इसका दैवी परिवार चार हजार का है । यह इसका त्रुटिक है। इसके आगे का कथन पूर्वोक्तरूप से है। 'एवं जाव वरुणस्स' इसी प्रकार से इसके जो यम, वरुण और वैश्रमण नामके ओर लोकपाल हैं उनके विषय में कथन जानना चाहिये । 'नवरं विमाणा जहा चउत्थसए सामने यार अमहिषीमा ४ी छे. "तंजहा" मनानाभनीय प्रमाणे छ___ "पुढवी, रायी, रयणी, विज्जू" (1) पृथ्वी, (२) रात्री, (3) २१नी मने (१) विद्यत् "तत्थणं एगमेगाए देवीए सेसं जहा सकस लोगपालाणं" "a પ્રત્યેક અગ્રમહિષીને એક એક હજાર દેવીને પરિવાર છે. ઈત્યાદિ સમસ્ત કથન શકના લેકપાલના કથન પ્રમાણે સમજવું. એટલે કે તે પ્રત્યેક અગ્રમમહિષી પિતાની વૈકિય શક્તિ વડે બીજી એક એક હજાર દેવીઓની વિમુર્વણા કરી શકે છે. આ રીતે સમ લોકપાલને દેવી પરિવાર ચાર હજારને થાય છે. આ ૪૦૦૦ દેવીઓના સમૂઈને તેનું ત્રુટિક કહે છે.
"एवं जाव वरुणस्स" मे प्रमाणे तना मीn alsो यम, १२५ भने वैश्रवश्न विष ५५ समापु "नवर विमाणा जहा चउत्थसए, सेस तंव
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯