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________________ भगवतीसूत्रे हनीयम् । नवरं सयंपभे विमाणे, सभाए. सुहम्माए, सेमिंसि सीहासणंसि, सेसं तं चेव नवरं-विशेषस्तु स्वयंपभे विमाने, सभायां सुधर्मायां, सेामे सिंहा. सने इति वक्तव्यम्, शेषं तदेव-चमरलोकपालवदेवाव सेयम्, ‘एवं जाव वेसमणस्स, नवरं विमागाइं जहा तइयसए' एवम्-उक्तरीत्या यावत्-यमस्य, वरुणस्य, वैश्रवणस्यच अवशिष्टस्य शक्र लेोकपालत्रयस्यापि एकैकस्य चतस्रः चतस्रः अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः, शेषं सर्वं चमरलोकपालत्रयवदेवावसे यम्, नवरं-विशेषस्तु तेषां विमानानि यथा तृतीयशतके प्रथमोद्देश के प्रतिपादितानि तथैवात्रापि प्रतिपत्तव्यानि तत्र सोमस्य स्वयंप्रभं विमानं प्रोक्तमेव शेषाणां त्रयाणां यमवरुणवैश्रवणानां इस प्रकार सेाम लोकपाल का देवो परिवार कुल चार हजार का है। यह इसका त्रुटिक है । इत्यादि और सब कथन अपने आप जान लेना चाहिये । 'नवरं सयंपभे विमाणे सभाए सुहम्माए सोमंसि सीहासपंसि, सेसं तं चेव' चमर लोकपाल की अपेक्षा इस लोकपाल के प्रकरण में ऐसा कथन करना चाहिये कि इसका विमान स्वयंप्रभ हैं उसमें सुधर्मा नामकी एक सभा है और उस सभा में सोम नामका इसका सिंहासन है। बाकी का और सब कथन चमर लोकपाल के जैसा समझ लेना चाहिये। ‘एवं जाव वेसमणस्स, नवरं विमाणाई जहा तइयसए' इसी प्रकार का कथन यावत्-यम, वरुण, और वैश्रमण-इन अवशिष्ट तोन इन्द्र के लोकपालों के विषय में भी जानना चाहिये-अर्थात् इनमें एक २ लोकपाल की चार चार पट्टदेवियां हैं । इत्यादि और सब इनके विषय का कथन चमर लोकपाल त्रय की तरह समझ लेना चाहिये। ૪૦૦૦ દેવીઓનો પરિવાર છે. તેને સમલેકપાલનું ગુટિક કહે છે. બાકીનું समस्त ४यन यभरना उपासना इथन अनुसार सभा. "नवर" ५२न्तु ते थन ४२di मा ४थनमा मेटटी विशेषता छ , “सयंपभे विमाणे, सभाए सुहम्माए, सोमंसि सीहासणंसि, सेसं तं चेव" शनाप सोभमहाश. જના વિમાનનું નામ સ્વયંપ્રભ વિમાન છે, તેમની સભાનું નામ સુધમાં સભા છે અને સિંહાસનનું નામ સમ સિંહાસન છે. બાકીનું સમસ્ત કથન ચમરના લોકપાલના કથન પ્રમાણે જ સમજવું. "एवं जाव वेसमणस्स, नवर विमाणाई जहा तइयसए" से ४ारनु કથન યમ, વરુણ અને વૈશ્રવણ નામના બાકીના ત્રણ કપાલે વિષે પણ સમજવું. એટલે કે તે દરેક લોકપાલને પણ ચાર ચાર પટ્ટદેવીઓ છે અને તે પ્રત્યેક પટ્ટદેવીને ૧૦૦૦–૧૦૦૦ ને દેવીપરિવાર છે, ઈત્યાદિ કથન ચમરના લેપાલના કથન પ્રમાણે સમજવું. પરંતુ આ કથનમાં વિમાનના શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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