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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१० उ०५ सू०१ चमरेन्द्रादीनाम् अग्रमहिषीनिरूपणम् १४३ अन्यानि अष्टाष्टदेवीसहस्राणि परिवारं विकुर्वितम् । एवं विकुर्वणे कृते सति सपूर्वाऽपरेण-पूर्वापरसहितेन एकैकदेव्या अष्टाष्ट अन्यानि देवीसहस्राणि परिवारतया विकुतीनां पञ्चानाम् अष्टभिर्गुणिते सर्वसंमेलनेन चत्वारिंशद् देवीसहस्राणि भवन्ति तदेतत्-त्रुटिकं नाम वर्ग उच्यते, वैक्रियकृतदेवीशरीराणां समूहः त्रुटिकशब्देन उच्यते, स्थविराः पृच्छन्ति-'पभूणं भंते ! चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया चमरचंचाए रायहाणीए, सभाए सोहम्माए चमरंसि सीहासणंसि तुडिएणं सद्धिं दिवाई भोगभोगाइ भुंजमाणे विहरित्तए?' हे भदन्त ! प्रभुः समर्थः खलु किम् चमरः असुरेन्द्रः, असुरकुमारराजः चमरचश्चायां राजधान्यां सभायां सुधर्मायाम् चमरे-सिंहासने त्रुटिकेन वैक्रियकृतदेवीसम्हेन सार्द्धम् , दिव्यान् भोगभोगान्, भोगः स्त्रीशरीर, तदुपयोगितया भोगाः मनोज्ञस्पर्शादयः भोगमोगाः तान् यद्वा भोग्य भोगान्-भोक्तुं योग्या भोग्यास्तेषां भोगास्तान भुञ्जानः-विहर्तुम् ? भगवाएक एक अग्रमहिषी अन्य आठ २ हजार देवी परिवार को अपनी विकुर्वणा शक्ति द्वारा निष्पन्न कर सकने में समर्थ है। इस प्रकार से इन पांच अनमहिषियों का देवी परिवार ४० हजार का हो जाता है । इस प्रकार चालीस हजार देवी परिवार का नाम त्रुटिक है। इसका दूसरा नाम वैफ्रियकृत देवी शरीरों का समूह भी है। अब स्थविर प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'पभू ण भते ! चमरे अमुरिंदे असुरकुमारराया चमरचंचाए रोयहाणीए सभाए सोहम्माए चमरंसि सीहासण सि तुडिएण सद्धिं दिवाई भोगाभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए' हे भदन्त ! असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर चमरचंचाराजधानी में सुधर्मा सभा में चमरसिंहासन पर बैठ कर ४० हजार वैक्रिय शरीरकृत देवीसमूहरूप त्रुटिक के साथ क्या दिव्य भोग भोगों को भोग सकने में समर्थ होता આઠ હજાર અન્ય દેવીઓનું નિર્માણ કરવાને સમર્થ હોય છે. આ રીતે તે પાંચે અગ્રમહિષીઓને દેવીપરિવાર ૪૦ હજારને થાય છે. આ ૪૦ હજાર દેવીપરિવારને ત્રુટિક કહે છે. તેનું બીજુ નામ “વૈક્રિયકૃત દેવી શરીરને समूह” ५४ छे. स्थविशन। प्रश्न-" पभूणं भंते ! चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया चमरचंचाए रायहाणीए सभाए सोहम्माए चमरंसि सीहासणंसि तुडिएणं सद्धि दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए ?" उ सगवन्! शु मसुरेन्द्र, ससुरमा२२।११ ચમર પિતાની ચમચંચા રાજધાનીની સુધર્માસભામાં અમર નામના સિંહાસન પર બેસીને ૪૦ હજાર વયિશરીર ધારી દેવીઓના સમૂહ સાથે (ત્રુટિક સાથે) દિવ્ય ભેગે ભેગવી શકે છે ખરો? શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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