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________________ १२४ भगवतीने सगा देवा ? ' तत्-अथ केनार्थेन कथं यावत्-शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य त्रायस्त्रिंशकाः मन्त्रिसदृशाः देवाः त्रयस्त्रिंशत् सहाया उच्यन्ते ? भगवानाह-एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं, तेणं समएणं इहेब जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पालासए नामं संनिवेसे होत्था, वण्णओ' हे गौतम ! एवं खलु निश्चयेन, तस्मिन् काले, तस्मिन् समये, इहैव तावत् जम्बूद्वीपे द्वीपे भारते वर्षे पालाशको नाम सभिवेश आसीत् , वर्णकः, अस्य पालाशकसन्निवेशस्य वर्णनं चम्पानगरी वर्णनव बोध्यम् , 'तत्थ णं पालासए सन्निवेसे तायत्तीसं सहाया गाहावई, समणोवासया, जहा चमरस्स जाव विहरंति' तत्र खलु पालाशके सन्निवेशे त्रयस्त्रिंशत् सहायाः, गाथाजाव तायत्तीसगा देवा' हे भदन्त ! देवेन्द्र देवराज शक्र के मंत्रि स्थानापन्न-सहायकभूत ३३ त्रायस्त्रिंशक देव हैं ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जघुद्दीवे दीवे मारहे वासे पालासए नाम संनिवेसे होत्था, वण्णओ' हे गौतम! इसका उत्तर इस प्रकार से हैउसकाल में और उस समय में इस ज बूद्वीप नामके द्वीप में स्थित भरतक्षेत्र में एक पालाशक नामका संनिवेश था-इसका वर्णन चंपा नगरी के वर्णन की तरह जानना चाहिये. 'तत्थ णं पालासए सन्निवेसे तायत्तीसं सहाया गाहावई, समणेावासया, जहा चमरस्स जाच विहरंति' उस पालाशक सन्निवेश में परस्पर में सहायता करने वाले ३३ मौतम स्वामीना प्रश्न-“ अत्थिण भते सक्करस देविदस्स देवरण्णो पुच्छा" भगवन् ! हेवेन्द्र, १२।८ शने सहायभूत थना। तत्रीस वाय. शिवा डाय छ ? महावीर प्रभुना उत्त२-“हता अत्थि" डी, ગૌતમ! દેવેન્દ્ર, દેવરાજ શકને સહાયભૂત થનારા ૩૩ ત્રાયશ્ચિશક દે હોય છે. गौतम स्वामीना प्रश्न-" से केणठेण' जाव तायत्ती गा देवा" . વન! એવું આપ શા કારણે કહે છે કે દેવેન્દ્ર, દેવરાજ શકના મંત્રીસ્થાનાપન્ન સહાયકર્તા ૩૩ ત્રાયસ્વિંશક દે હોય છે? महावीर प्रभुन। उत्तर-एव खलु गोयमा तेण कालेण तेण समएण इहेव जबहीवे दीवे भारहे वासे पालासए नाम' सनिवेसे होत्या वण्ण प्रो" गौतम! આ જંબુદ્વીપ નામના દ્વીપના ભરતક્ષેત્રમાં પાલ શક નામે એક સંનિવેશ (ક) हेतु. तेनु न पानगरी प्रमाणे सभा'. “ तत्थण पालासए सन्निवेसे तायत्तीस सहाया गाहावई, समणोवामया, जहा चमरस्स जाब विहरति " ते પાલાશક સંનિવેશમાં પરસ્પરને સહાયભૂત થનારા ૩૩ શ્રમણોપાસક શ્રાવકે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯
SR No.006323
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages760
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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