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प्रमेयवन्द्रिका टो श०१ उ ०३३ सू०१० जमाले दीक्षानिरूपणम् ५४९ स्थिताः प्रस्थानं कृतवन्तः ' तयाणंतरं च णं बहवे राईसरतलबरनाव सत्थवाहप्पभिइओ संपट्टिया' तदनन्तरं च खलु बहवः राजेश्वर तलवरयावद-माडम्बिककौटुम्बिकेभ्य श्रेष्ठि सेनापति सार्थवाहप्रभृतयः पुरतः संपस्थिताः। 'तएणं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया पहाए कयवलिकम्मे जाव विभूसिए हथिखंधवरगए' ततः खलु तस्य जमाले क्षत्रियकुमारस्य पिता स्नातः कृतबलिकर्मा यावत् कृतकौतुक वाजूमें चले । ' तयाणंतरं च णं राईसर तलवर जाव सत्थवाहपभिइओ पुरओ संपढिओ' इनके बाद अनेक राजा, ईश्वर, तलवर यावत् सार्थवाह आदि आगे आगे चले यहां यावत् पदसे "माडम्बिक कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति इन पदोंका ग्रहण हुआ है। " महापुरिस वग्गुरा" में जो वागुरा पद आया है, वह समूह अर्थमें आया है, वैसे परन्तु यहां जो वाग्गुरापद लिखा गया है, वह सब ओरसे परिवार रूपसे ग्रहण किया है " महापुरिसवागुरा " महा समूह में जो " महा" शब्द आया है, वह “वागुरा" के विशेषण रूपमें आया है 'तएणं से जमालिस्त खत्तियकुमारस्स पिया पहाए कयरलिकम्मे जाब विभूसिए, हत्थि खंधवरगए' इसके बाद क्षत्रियकुमार जमालिका पिता अपने पुत्रके पीछे २ चला, चलनेके पहिले इसने अच्छी तरहसे स्नान किया था, पलिकर्म-बायस आदिबहवे राईसर, तलपर जान सत्थवाहप्पभिइओ पुरओ संपट्टिओ" त्या२ ५.६ भने । श्वर ( यु१२॥४) ३२ ( भांजलि, मे!) तथा साथ વાહ પર્યન્તના લેકે પાલખીની આગળ ચાલતા હતા. અહીં સાર્થવાહની ५७ मा " जाव" ५४थी "मावि, मि, क्य, श्रेष्ठी भने सेनापति " मी पाय अY ४२राया छ. “ महापुरिसरगुरा" सूत्रांनी सारे "वागुरा" पहने। प्रयोग थयेछे ते सडना अ भा थये। छ, ५२न्तु सग पान समधनी विया२ २i " महापुरिसवरगुरा" मेरो " पुरुषांना मा सभू" मथ सभ४, सने 'भ' ५४ समूना વિશેષણ રૂપે વપરાયું છે એમ સમજવું
" तएणं से जमालिस खत्ति यकुमारस्स पिया हाए, कयबलिकम्मे जाव विभूसिए, हथिखंचवरगर" २ मा क्षत्रियकुमार मासीना पिता ५५ શ્રેષ્ઠ ગજરાજની પીડ પર સવાર થઈને તેની પાછળ પાછળ ચાલવા લાગ્યા. હાથી પર સવાર થતાં પહેલાં તેમણે સ્નાન, બલિકમ, કૌતુક મંગલ રૂપ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૮