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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०९७०३३सू०६ जमालिवक्तव्यनिरूपणम् ४५७ मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पञ्चइहिसि' श्रमणस्य मगवतो महावीरस्य अन्तिके समीपे मुण्डो भूत्वा, अगारात् गृहात् निर्गत्य अनगारिता प्रनमिष्यसिप्रव्रज्या गृहीष्यसि। 'तएणं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मापियरो एवं क्यासी' तत:खलु स जमालिः क्षत्रियकुमारः अम्बापितरौ एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण अबादीत'तहावि णं तं अम्मताओ ! जं णं तुझे ममं एवं वदह-इमं च णं ते जाया ! सरीरगं तं चेव जाव पव्वइहिसि' हे अम्बतातौ ! तथापि अपिशब्दस्य एवार्थकतया तथैव खलु नान्यथा, यच्चयोक्त तत् यत् खलु यूयम् माम् एवं पूर्वक्तिरीत्या वदय-प्रतिपादयथ-हे जात हे पुत्र ! इदं च खलु तब शरीरकं तदेव यावत्-मत्रजिष्यसि इति, तत्र यहुक्तम्-अस्मासु कालगतेषु प्रवनिष्यसि इति तदाश्रित्याहमहावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पवइहिसि' तुम श्रमण भगवान महावीरके पास मुण्डित होकरके इस गृहस्थात्रस्थाके परित्यागपूर्वक अनगारावस्था धारण कर लेना-'तए णं से ज. माली खत्तियकुमारे अम्मापियरो एवं वयासी' इस प्रकारसे मातापिताकी तरफसे कही गई बातको सुनकर उस क्षत्रियकुमार जमालीने उनसे ऐसा कहा-'तहावि णं अम्मताओ! जणं तुज्झे ममं एवं वदह' हे मात तात ! आपने जो मुझसे ऐसा कहाहै कि 'इमं च णं ते जाया! सरीरगं तं चेव जाव पव्वदहिसि' हे पुत्र ! तेरा यह शरीर प्रविशिष्ठ रूप आदिवाला है-यहांसे लेकर दीक्षा ले लेना यहां तक सो ठीक कहा है-'तहा वि' इससे "आपका कहना वसाही है" अर्थातू जैसा आरने कहा है वह वैसाही है, अतः जहां पर भी 'तहावि' इस प्रक रणमें ऐसा शब्द आवे वहां जमालिके उत्तरमें ' सो ठीक है। इस रूपसे इसका अर्थ करना चाहिये ! अब जमालि पिताके इस राग भरे कथनको कि हमारे कालग्रसित हो जाने पर तुम दीक्षा धारण कर लेना गारिय पञ्चइहिनि" श्रम नगवान महावीरनी पासे भुडित धन मा ગૃહસ્થાવસ્થાને પરિત્યાગ કરીને અણગારાવસ્થા (સાધુ પર્યાય) ધારણ કરજે. " तएणं से जमालि खत्तियकुमारे अम्मापियरो एवं वयासी" भातापितानी मा પ્રકારની વાત સાંભળીને ક્ષત્રિયકુમાર જમાલીએ તેમને આ પ્રમાણે કહ્યું– तहा विणं अम्मताओ! जंणं तुझे ममं एवं वदह" मातापिता! मा भने मे रे ४ " इमं च णं ते जाया ! सरीरंगं त चेव जाव पव्वइहिसि" “म त शरी२ प्रविशिष्ट ३५ माहिथी युत छ," त्याह કથનથી લઈને “દીક્ષા (અણગારાવસ્થા) ધારણ કરજે” ત્યાં સુધીનું કથન मडी ] ४२. तहा वि" मापनी ते वात भरी छ. ५२न्तु भा५ से श्री. भगवती सूत्र : ८
SR No.006322
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages685
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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