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________________ ४१२ भगवतीसूत्र पासमाणस्स वा अयमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था ' ततःखलु तस्य जमाले क्षत्रियकुमारस्य तं महान्तं जनशब्दं वा यावत् जनव्यूह वा, जनवोल वा, जनकलकलवा, जनोमिवा, जनोक्तालिकां वा, जनसन्निपातं वा, शृण्वतो वा, पश्यतो वा अयं वक्ष्यमाणः आध्यात्मिकः आत्मगतः आत्मश्रितो यावत् चिन्तितः प्रार्थितः कल्पितः मनोगतः अबहिः प्रकाशितःसंकल्पः तथा च आ. ध्यात्मिका:-आत्मगतः अङ्कुरित इव १ तदनु चिन्तितः पुनः पुनः स्मरणरूपो विचारो द्विपत्रित इव २। ततः कल्पितः-सएव व्यवस्था युत्तः-' इममेव करिध्यामि' इति कार्याकारेण परिणतो विचारः पल्लवितइव ३ प्रार्थितः सएच इष्ट रूपेण स्वीकृतः पुष्पित इव ४, मनोगतः संकल्पः-मनसि दृढरूपेण निश्चयःजाव जणसन्निवार्य वा सुणमागस्स वा पासमाणस्स वा अयमेयारूवे अज्झस्थिए जाव समुप्पजिजस्था' इसके बाद उस क्षत्रियकुमार जमालिके उस महान् जनशब्दको यावत्-जनव्यूहको, जनबोलको, जन कलकलको, जनोर्मिको, जनोत्कलिकाको और जनसन्निपातको सुन करके और देख करके यह ऐसा आत्माश्रित यावत्-चिन्तित, प्रार्थित, कल्पित और मनोगत विशेषणोवाला संकल्प उत्पन्न हुआ-अङ्कुरितकी तरह वह प्रथम आत्मगत हुआ, इस कारण उसे आध्यात्मिक कहा गया हैबादमें उस संकल्पको पुनः पुनः स्मरणरूप होनेसे द्विपत्रित की तरह चिन्तित कहा गयाहै, "अब मैं इसे ही करूंगा" इस प्रकारकी व्यवस्थायुक्त होनेसे उसे पल्लवित हुएकी तरह पल्लवित कहा गया है । प्रार्थित इसलिये उसे कहा कि-पुष्पित हुए की तरह वह इष्टरूपसे स्वीकृत हुआ और महै।गत उसे इसलिये कहा कि वह मनमेंही दृढ रूपसे " तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्त त महया जणमई वा जाव जनसन्निवायं वा सुणमाणस्स वा पासमाणस्स वा अयमेयारूवे अज्ज्ञथिए जाव समपन्जिया " पोताना भनी प.सेयी ५२ थतi सोना महान न. શબ્દને, જનમૂહને, જનલને, જનકલકલને, જેનેમિને, જનલિકાને અને જનસન્નિપાતને (આ બધાં પદને અર્થ ઉપર સમજાવ્યું છે) સાંભળીને તથા નિહાળીને તે ક્ષત્રિયકુમાર જમાલિને આ પ્રકારને આધ્યાત્મિક, ચિન્તિત प्रार्थित, पित भने भनागत किया२ माव्यो....... જેમ અંકુર પહેલાં જમીનમાં દબાયેલો રહે છે, તેમ આ વિચાર પ્રથમ આત્માની અંદર જ દબાયેલે રહ્યો તેથી તેને આધ્યાત્મિક કહ્યો છે. ત્યારબાદ તે સંકલ્પ (વિચાર) હૃદયમાં ફરી ફરીને આવવા લાગ્યો તેથી દ્વિપત્રિતની જેમ તેને ચિહ્નિત કહ્યો છે. “હવે હું આ પ્રમાણે જ કરીશ,” આ પ્રકારની श्रीभगवती. सूत्र: ८
SR No.006322
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages685
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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