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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका २०९४०३३९०३ देवानन्दानिर्वाणवर्णन ३९१ कृत्वा वन्दते, नमस्यति, वन्दित्वा, नमस्थित्वा एवं वक्ष्यमाणकारेण अगदीतउक्तवान् , ' एरमेय भंते ! तहमेयं भंते ! जहा खरो नाब से जहेयं तुम्भे वदह तिकट्ठ उत्तरपुरस्थिमं दिसोभागं अबकम' हे महन्त ! एवमेतत्, भवदुक्तं सत्यमेन हे भदन्त ! तथैतत् भवदुक्तं सर्व सत्यमेच, स्कन्द के तापसनकरणे द्वितीयशतकस्य प्रथमोद्देश के प्रतिपादितं तथैवानपि प्रतिमत्तव्यम् , यावत् तत् यथैतत् यूयं वदथ तथैतन् इति कृत्वा उत्तरपौरस्त्यम् दिग्भागम् ईशानकोणम् अपक्राम्यति--गच्छति, 'अक्कमित्ता सपमेव आभरणमल्लालंकारं ओमुबइ। अपक्रम्य-त्या स्वयमेव आमरणमाल्याङ्कारम् अवमुश्चति-परित्यजति, 'ओमुइता सयमेव पंचमुट्टियं लोयं करेइ' अवमुच्य स्वयमेव पञ्चमुष्टिकं पञ्चमुष्टिप्रमाणं लोचं केशलञ्चनं करोति 'करिता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छ' क्षिणापूर्वक वन्दना की, नमस्कार किया, वन्दना नमस्कार करके फिर उसने प्रभुसे इस प्रकार कहा-'एवमेयं भंते !तहमेयं भंते !' हे भदन्त ! आपने जैसा कहाहै वह सर्वथा सत्यहीहै। इस प्रकारका यह सब कथन स्कन्दक तापसके प्रकरणमें द्वितीय शतकके प्रथम उद्देशकमें जैसा कहा गया है वैसाही यहाँ पर जानना चाहिये यावत् आप जैसा कहते हैं, वह वैसाही है यहां तक इस प्रकार कहकर वह ऋषभदत्त ब्राह्मण ईशान दिशाकी ओर गया-वहां 'अवकमित्ता' जा करके उसने “ सयमेव" अपने आपही "आभरणमल्लालंकार" आभरणोंको मालाओंको और अलङ्कारोंको उतार दिया 'ओइत्ता' उतार कर फिर उसने 'सयमेव ' अपने आपही 'पंचमुहिय लोयं करेह' पंचमुष्टि प्रमाण केश लुचन किया. 'करित्ता' केशलुचन करके वह 'जेणव' जहां पर કરી અને નમસકાર કર્યો. વંદા નમસ્કાર કરીને તેણે મહાવીર પ્રભુને मा प्रभार ४धु "एवामेय भंते ! तह मेयं भंते !" उ लहन्त ! मार हत સર્વથા સત્ય છે. હે ભદન્ત ! આપે જે ધર્મ બતાવ્ય એ જ સાચે ધમ છે.” આ પ્રમાણે જેવું કથન સ્કક તાપસના પ્રકરણમાં આપવામાં આવ્યું છે, એ જ પ્રમાણે અહીં પણ સમસ્ત કથન ગ્રહણ કરવું. આ પ્રમાણે કહીને ते महत प्राथ शान हिशा त२६ गया. " अवकमित्ता" त्याने तो " सयमेव " पोतानी on " आमरण मल्लालंकारं " माल, भाणामे। भने Ram Sतारी नाभ्या. " ओमुइत्ता" GIn नाभीने “ सयमेव " ते पातानी antr " पंचमुद्वियं लोय करेइ ” पांय भुष्टिप्रभा उशना सोय ये. " करित।" शयन ४ीने त " जेणेव " rmi “ समण भगवं महा श्री. भगवती सूत्र : ८
SR No.006322
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages685
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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