SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 392
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - प्रमेयचन्द्रिकाटी०।०९३०३३सू०१ ऋषभदत्तनिर्वाणवर्णनम् ३८१ गेन १, अचित्तानां वस्त्राभरणादीनामपरित्यागेन २, ‘विणयोणयाए गायलट्ठीए, चक्खुफासे अंजलिपग्गहेण' विनयोपनतया गात्रयष्टया शरीरावनम्रीकरणेन ३, चक्षुःस्पर्श भगवतश्चाक्षुषप्रत्यक्षत्वे अञ्जलिप्रग्रहेण प्राञ्जलिकरणेन ४, 'मणस्स एगत्तीकरणेणं ' मनसः एकत्रीकरणेन इति५, 'जेणेब समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ ' यत्रैव श्रमणो भगवान् महावीर आसीत् तत्रैव उपागच्छति, ‘उवा. गच्छित्ता समण भगवं महावीर तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ' उपागम्य श्रमण भगवन्तं महावीर त्रिकृत्वा त्रिवारम् आदक्षिणप्रदक्षिण करोति, 'करिता वंदइ, नमंसद ' कृत्वा बन्दते नमस्पति, वंदिता नमंसित्ता उसमदत्तं माहणं पुरओ कडे ठियाचेव सपरिवारा सुस्मसमाणी णमंसमाणी अभिमुहा विणएणं पंजलिउडा जाव पज्जुबासइ ' वन्दित्वा नमस्यित्वा ऋषभदत्तं ब्राह्मणं पुरतः कुता स्थिते । अनुपविष्टा सती सपरिवारा शुश्रूषमाणा नमस्पती अभि. मुखा विनयेन प्राञ्जलिपुटा यावत् पर्युपास्ते ।। मृ० १ ।। वस्त्रादिकोंका नहीं छोड़ना, विनयसे युक्त शरीरको झुकाना ३, भग वान्को देखतेही हाथोंको जोड़ लेना ४, और मन का एकाग्र करना ५, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्त्तो आयाहिणंपयाहिणं करेइ ' श्रमण भगवान महावीरके पास पहुंचकर उसने तीन बार उनको आदक्षिणा प्रदक्षिणा की 'करित्ता वंदह नमंसह ' आदक्षिणा प्रदक्षिणा करके फिर उसने उनको वन्दना की नमस्कार किया 'वंदित्ता नमंसित्ता उस भदत्तं माहणं पुरओ कट्ट ठिया, चेव सपरिवारा सुस्मूसमाणी नमसमाणी अभिमुहा विणएणं पंजलिउडा जाव पज्जुवासह' वन्दना नमस्कार करके वह ऋषभदत्त ब्राह्मणको आगे करके खड़ी हो गई और परिवार सहित खडी २ उसने धर्मश्रवण करने की इच्छासे प्रभुको बारबार नमस्कार किया एवं बडे विनयसे उनके समक्ष दोनों हाथ जोड़कर वह उनकी यावत् पर्युपासना करने लगी ॥ सू० १॥ मशवानने पतi ४ म-डाय 34॥ मने भनने से ४२९. “ उवागच्छित्ता समण भागः' महावीर तिक्खुतो आयाहिण पयाहिण करेइ" श्रम स. વાન મહાવીરની પાસે પહોંચીને તેણે ત્રણ વાર ભગવાનની અદક્ષિણા પ્રદક્ષિણા ४२. “ करित्तो वंदइ, नमसइ" माक्षिय! प्रक्षि! रीने तेथे ३Nथा तमन ! नमः॥२ ४ा, " वंदित्ता नमसित्ता उसभदत्तं माहण पुरओ कट्टु ठिया चेव सपरिवारा सुस्ससमाणी नमसमाणि अभिमुहा विणएण' पज. लिउडा जाव पाजुवासया नमः॥२४ीन लत्तनी पाछत भी રહી અને પરિવાર સહિત ઉભા રહીને તેણે ધર્મશ્રવણ કરવાની ઈચ્છાથી श्री. भगवती सूत्र : ८
SR No.006322
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages685
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy