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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटी०२०९३०३३०१ ऋषभदतनिषवर्णनम् 6 " , सा तथा 'वरचंदणचच्चिया वरचन्दनचर्चिता, वरचन्दनं श्रेष्ठश्रीखण्डचन्दनं afi aai ai या सा वरचन्दनचर्चिता, ' वराभरणभूसियंगी ' वराभरणभूषिताङ्गी - उत्तमालङ्कारालङ्कृतशरीरा, कालागुरुधूवधूविया' कालागुरुधूपधूपिता, कृष्णागुरुधूपत्रासिताङ्गी 'सिरि समाणबेसा' श्रीसमान वेशा तत्र श्रीः - लक्ष्मीः तया समान श्रेष्ठवत्रधारिणी जाव अप्पमहग्घा भरणालंकियसरीरा ' यावत् अल्प महार्घाभरणालङ्कृतशरीरा, अल्पम् अल्पभारम् महार्थं बहुमूल्यकं यदाभरणं तेनालङ्कृतं शरीर' यस्याः सा तथा ' बहूहिं खुज्जाहि' बहीभिः चक्रपृष्ठनाभिः दासीभिः चिलाइयाहि चिलात देशोद्भवाभिः 'वामणियाहिं ' Afनकाभिः स्वकायाभिः, ' वडहियाहि ' वडभिकाभिः वक्रकायाभिः, 'बवरियाहिं ' वर्षरिकाभिः, बर्बरदेशोत्पन्नाभिः " ईसिणियाहि ' इसिनिकामिः जोणियाहि ' यौनिकाभिः, 'चारुणियाहिं' चारुणिकाभिः ' पल्हवियाहि ' सुरभिकुसुमवरियसिरया ' अपने केशों पर उसने समस्त ऋतुओंके सुरभित पुष्पोंको गूंथा 'वरचंदणचच्चिया ' ललाट पर श्रेष्ठ चन्दनका लेप किया ' वराभरणभूसियंगी ' अपने शरीरको उसने और भी उत्तम अलङ्कारोंसे अलङ्कृत किया 'कालागुरुधूवधूविया कालागुरुके धूपसे अपने सुन्दर शरीरको उसने वासित किया 'सिरिसमाणवेसा' इस प्रकार उसने अपने आपको लक्ष्मीके समान श्रेष्ठ वस्त्राभूषणों से विभूषित कर दिया ' जाव अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा ' जिन अलङ्कारों से उसने अपने शरीरको अलङ्कृत किया था, वे भारमें तो कम थे, पर मूल्य में बहुत कीमती थे ' बहूहिं खुज्जाहिं, चिलाइयाहिं, asहियाहि, बबरियाहिं, ईसिणियाहिं० ' इसके साथ अनेक देशोंकी दालियां थीं जो भिन्न २ वेषसे युक्त थीं इसी यातको अब सूत्रकार તેણે પેાતાના કેશ ગૂંથ્યાં. वरचंदणचच्चिया ” કપાળમાં ઉત્તમ ચન્દનના લેપ अर्थो, "वराभरणभूसियंगि" जीन पशु धाथा अस अरोथी तेथे पोताना शरीरने सुशोभित कालावधूविया અગરુના ધૂપથી તેણે પેાતાના શરીરને સુવાસિત કર્યું, " सिरिसमाणवेला " या रीते तेथे पोतानी लतने લક્ષ્મીના જેવી વેષભૂષાથી વિભૂષિત કરી દીધી. जाव अप्पमद्दग्धाभरणालंकियसरीरा ” तेथे ने गत अशथी पोताना शरीरने विभूषित भ्यु' हेतु, ते असं भरे वनमां उस पशु हुन भूल्यवान तां. " बहूहिं खुजाहि चिछाइयाहि', वडहियाहि, बब्बरियाहि, ईसिणियाहि ० " तेनी साथै देशविदेशनी જે અનેક દાસીએ હતી, તેમનું તથા તેમની વેષભૂષાનું વર્ણન કરતા સૂત્રકાર કહે છે કે " 66 6 2 શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૮ 66 66 ३७५
SR No.006322
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages685
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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