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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटी०२०९३०३३०१ ऋषभरतनिणिवर्णनम् ३६७ सामो जाव पज्जुवासामो ' हे देवानुपिये ! तत् तस्मात् कारणात् गच्छामः खलु वयम् श्रमण भगवन्तं महावीरं वन्दामहे, नमस्यामः, यावत् शुश्रषमाणा अभिमुख विनयेन प्राञ्जलिपुटाः पर्युपास्महे ' एयणं इहभवे य, परभवे य, हियाए. सुहाए, खमाए, निस्सेयसाए आणुगामियत्ताए भविस्स३' एतत् खलु भगवता. महताम् अभिगमनवन्दननमस्करणप्रतिपच्छनपर्युपासनादिकम् इह भवे च परभवे च हित्ताय पथ्यान्नवत्, सुखाय शाताय इष्टवस्तुप्राप्तिवत्, क्षमाय औचित्याय सङ्गतत्वात् निश्रेयसाय मोक्षरूपपरमकल्याणाय सिद्धिवत्, आनुगामिकत्वाय परलो के सहगामित्वाय शुभानुबन्धायेत्यर्थः भविष्यति । 'तए णं सा देवाणंदा शातही क्या करनी ' तं गच्छामो णं देवाणुप्पिए ! समणं भगवं महा वीरं वंदामो नमंसोमो जाव पज्जुशासामो' इसलिये हे देवानुप्रिये ! हम चलें और श्रमण भगवान महावीरको बंदना करें, उन्हें नमस्कार करें, और धर्मश्रवण की इच्छासे युक्त हुए हम लोग उनके समक्ष विनयसे दोनों हाथ जोडकर बैठे, ओर उनकी पर्युपासना करें। एयण्णं इहभवे य परभवे य हियाए, सुहाए, खमाए, निस्सेयताए आणुगामियत्साए भविस्लइ ' यह भगवान के समक्ष हम लोगोंका जाना, उन्हें वन्दना करना, नमस्कार करना, उनसे प्रश्नका पूछना, उनकी पर्युपासना करना आदि हमारे लिये इस भवमें और परभवमें पथ्यानकी तरह हितावह होगा, इष्ट वस्तुकी प्राप्तिकी तरह सुखावह होगा, सङ्गत होनेसे औचित्यके निमित्त होगा, सिद्धिकी तरह मोक्षरूप परम कल्याणके लिये होगा और परलोकमें सहगामित्वके निमित्त शुभानुबन्धके निमित्त होगा, 'तएणं सा देवाणंदा माहणी उसमदत्तेणं माहणेणं एवं बुत्ता समाणी हट्ट "तं गच्छामो णं देवाणुप्पिए ! समण भगवं महावीर' वदामो नमसामो जाव पज्जुवासामो" तो वानुप्रिये ! या सापये श्रम भगवान महाવીર પ્રભુ પાસે જઈએ, તેમને વંદણું કરીએ, નમસ્કાર કરીએ અને ધર્મ શ્રવણની ઈચ્છાથી બને હાથ જોડીને તેમની સમક્ષ બેસી જઈએ અને તેમની ५यु पासना श. " एयणं इहभवे य परभवे य हियोए, सुहाए, खमाए, निस्सेयमाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ" त माल भने ५२सवमा माप માટે પય્યાન્નની માફર હિતકારક થશે, ઈષ્ટ વસ્તુની પ્રાપ્તિની માફક સુખાવહ થઈ પડશે, સંગત હોવાથી ઔચિત્યનું નિમિત્ત થશે, મોક્ષરૂપ પરમ કલ્યાણની પ્રાપ્તિ કરાવશે અને પરલેકમાં સહગામિત્વનું નિમિત્ત શુભાનુબન્ધના નિમિત્ત ३५ 22. “ तएणं सा देवाण दो माहणी उसभदत्तेण माहणेण एवं बुत्ता समाणी श्री. भगवती सूत्र : ८
SR No.006322
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages685
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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