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प्रमेयचन्द्रिका टी० २०९ उ०३२ सू०२ उवर्तनानिरूपणम् १५ एवं यावत् स्तनितकुमाराः । सान्तरं भंते ! पृथिवीकायिका उद्वर्तन्ते ? पृच्छा, गाङ्गेय ! नो सान्तरं पृथिवीकायिका उद्धर्तन्ते, निरन्तरं पृथिवीकायिकाः उद्वर्तन्ते, एवं यावत् वनस्पतिकायिकाः नो सान्तरम् , निरन्तरम् उद्वर्तन्ते । सान्तरं भदन्त ! द्वीन्द्रिया उद्वर्तन्ते ? निरन्तरं द्वौन्द्रिया उद्वर्तन्ते, 'गाङ्गेय ! सान्तरमपि द्वीन्द्रिया उद्वर्तन्ते निरन्तरमपि द्वीन्द्रिया उद्वर्तन्ते एवं यावत् वानव्यन्तरी । सान्तरं भदन्त ! ज्योतिष्का च्यवन्ति ? पृच्छा. गाङ्गेय! सान्तरमपि ज्योतिष्का च्यवन्ति, तक जानना चाहिये । (संतरं भंते ! पुढविक्काइया उव्वद त, पुच्छा) हे भदन्त ! पृधिकायिक जीव सान्तर होकर निकलते हैं इत्यादि प्रश्न(गंगेया) हे गांगेय ! (णो संतरं पुढविकाइया उव्वदृति निरंतरं पुढवि. काइया उवदृति) पृथिवीकायिक जीव व्यवधान सहित होकर नहीं निकलते हैं किन्तु वे निरन्तर निकलते हैं। ( एवं जाव घणस्सइकाइया णो संतरं, निरंतरं उव्वदृति ) इसी तरह का कथन यावत् वनस्पतिकायिक जीवों तक जानना चाहिये-अर्थात् वे सान्तर होकर नहीं निकलते हैं किन्तु निरन्तर ही निकलते हैं। (संतरं भंते ! बेइंदिया उव्वदंति, निरंतरं भंते ! उव्वति) हे भदन्त ! बे इन्द्रिय जीव सान्तर हो करके निकलते हैं या निरन्तर होकर के निकलते हैं ? (गंगेया) हे गांगेय । (संतरंयि बेइंदिया उन्वति, निरंतरंपि बेइंदिया उव्यदृति) बेइन्द्रिय जीव सान्तर भी निकलते हैं और निरन्तर भी निकलते हैं। ( एवं जाव वाणमंतरा ) इसी तरह का कथन यावत् वानव्यन्तरों तक के विषय में નિષ્ક્રમણ વિષયક કથન સ્તુનિતકુમાર પર્યન્તના વિષે પણ સમજવું. (सतर भंवे ! पुढविकाइया उव्वट्ठति पुच्छा ) 3 महन्त ! पृथ्वीयि Yना व्यवधानथी नाणे छ विन व्यवधानथा नाणे छ ? (गांगेया !) उ मांगेय ! (णो सतर पुढविक्काइया उध्वति, निरंतर पुढविक्काइयो उव्वदति) પૃથ્વીકાયિક છે કાળના વ્યવધાનથી (સતર) નીકળતા નથી પણ નિરંતર (विना व्यवधान) नाणे छे. (एवं जाव वणस्सइकाइया णो संतर, निर'तर' उव्वति) वनस्पति पय-तना wो वि ५९ मे ४थन सभा. सटतम ५ सान्त२ नीता नथी ५५ निरन्तर नीले छे. (संतर भंते ! पेइंदिया उबट्टति, निरंतर भंते ! उव्वदति ?) महन्त ! दीन्द्रिय જ કાળના વ્યવધાનથી નિષ્ક્રમણ કરે છે કે નિરંતર નિષ્ક્રમણ કરે છે ? (गंगेया ! ) गेय ! ( सतरपि बेइंदिया उठवति, निरंतरपि उठवट्टति ) કીન્દ્રિય જીવે સાન્તર પણ નિષ્ક્રમણ કરે છે અને નિરંતર પણ નિષ્ક્રમણ કરે छे. (वं जाव वाणमंतरा) मे १ ४थन वानन्यन्तरे। पयत विषयमा ५५
श्री. भगवती सूत्र : ८