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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० श०९ उ१२ सू० १० भवान्तरप्रवेशनकनिरूपण २११ याम् , एको वालुकामभायां संख्येयास्तमःप्रभायां भवन्ति, अथवा एको रत्नप्रभायाम् , एको वालुकामभायां संख्येयाः अधःसप्तम्यां भवन्ति । 'अहवा एगे स्यणप्पभाए, दो वालुयप्पभाए संखेज्जा पकप्पभाए होज्जा' अथवा एको रत्नप्रभायां द्वौ बालुकाप्रभायां संख्येयाः पङ्कप्रभायां भवन्ति, एवं एएणं कमेणं तिया संजोगो, चउक्कसंजोगो जाव सत्तगसंजोगो य जहा दसण्हं तहेव भाणियब्यो' एवं पूर्वीतरीत्या एतेन उपयुक्तेन आलापानां क्रमेण त्रिकसंयोगः, चतुष्कसंयोगः, यावत् पञ्चकसयोगः, षट्कस योगः सप्तकसं योगश्च यथा दशानां भणितस्तथैव संख्यातानाअधासप्तमी पृथिवी में होते हैं" यह अंतिम भंग है-इसके पहिले तीन भंग इस प्रकार से हैं । अथवा-एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक वालुकाप्रभाग और संख्यात नारक भ्रमप्रभा में होते हैं, अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक वालुकाप्रभा में और संख्यात नारक तमःप्रभा में होते हैं, अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक वालुकाप्रभा में और संख्यात नारक अधःसप्तमी पृथिवी में होते हैं 'अहवा एगे रयणप्पभाए, दो वालुपप्पभाए, संखेजा पंकप्पभाए होज्जा' अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, दो नारक वालुकाप्रभामें और संख्यात नारक पंकप्रभामें होते हैं, ' एवं एएणं कमेणं तिया संजोगो, चउक्क संजोगो, जाव सत्तक संजोगो य जहा दसण्हं तहेव भाणियब्वो' इस उपयुक्त आलापक्रमसे, जैसा दश नारकों का त्रिक संयोग, चतुष्कसंयोग, पंचक संयोग, षट्क संयोग और सप्तक संयोग पहिले कहा जा चुका है, उसी प्रकार से उसी तरह से सख्यात नारकों का भी घिक संयोग से ले પ્રભામાં, એક વાલુકાપ્રભામાં અને સંખ્યાત નારક તમ પ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે. અથવા એક નારક રત્નપ્રભામાં, એક નારક વાલુકાપ્રભામાં અને સંખ્યાત નારક माससभामा उत्पन्न याय छे. “ अहवा एगे रयणप्रभाए,, दो वालुयप्पभाए संखेज्जा पंकप्पभाए, होज्जा" अथवा मे ना२४ २त्ननामा, मे ना२४ qugni मन सन्यात ना२४ ५४मामा पन याय छे. “एवं एएणं कमेणं तिया संजोगो, चउकसंजोगो, जाप सत्तकसजोगो य जहा दुसण्हं तहा भाणियव्वो " मा उपयुत माया५ मथा व ४ नाना सियास ચતુષ્કસંગ, પંચસોગ, ષટકસંગ અને સપ્તકગ આગળ કહેવામાં આવ્યું છે, એ જ સંખ્યાત નારકેને ત્રિકસંગથી લઈને સસકસ ચોગ પયતને સચોગ કહે જોઈએ. તે આલાપકે કેવા બનશે તે સમજાવવા श्री. भगवती सूत्र : ८
SR No.006322
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages685
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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