________________
प्रमेयचन्द्रिका टी० श०९ २०३२ सू० ७ भान्तरप्रवेशनकनिरूपणम् १७९ एषां सप्तभिर्विकल्पैर्गुणने कृते सप्तचत्वारिंशदधिकशत ( १४७ ) भङ्गा भवन्तीति । ' एवं जाव छक्कसंजोगो य जहा सत्तण्हं भणिओ तहा अट्टण्ह वि भाणिययो' एवं पूर्वोक्तरीत्या यावत् त्रिकसंयोगः, चतुष्कसंयोगः पञ्चकसंयोगः, षट्कसंयोगश्च यथा सप्तानां नैरयिकाणां भणितस्तथा अष्टानामपि नैरयिकाणां भणितव्यः, नवरं एक्केक्को अन्महिओ संचारे यन्यो सेसं तं चेव जाव छक्कसंजोगो य' नवरं पूर्वापेक्षया विशेषस्तु अत्र एकैकोऽभ्यधिकः संचारयितव्यः 'सेसं तं चेव जाव छक्कसंजोगस्स' शेषं तदेव पूर्ववदेव यावत्-त्रिकसंयोगस्य, चतुष्कसंयोगस्य, पञ्चकसंयोगस्य, षट्कसंयोगस्य च, वक्तव्यम् , अथ षट्कसंयोगे काँश्चिद् भङ्गान् प्रदर्शयति- अहवा तिन्नि सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए जाव एगे अहेसत्तमाए होज्जा' अथवा त्रयः शर्करामभायाम् , एको वालुकाप्रभायाम् २१ प्रथम विकल्प में भंगों का आ जाता है २१ को सात विकल्पों से गुणा करने पर १४७ भंग द्विकसंयोग में आठ नारकों के होते हैं। ( एवं जाव छक्कसंजोगो य जहा सत्तण्हं भणिओ तहा अट्टाह वि भाणिययो) जिस प्रकार से सात नारकों का त्रिकसंयोग, चतुष्कसंयोग, पंचक संयोग, एवं षट्कसंयोग कहा गया है उसी प्रकार से आठ नारकों का भी यह सब संयोग कहना चाहिये (नवरं एकेको अब्भहिओ संचारेयव्वो सेसं तं चेव जाव छक्क संजोगो य) यहां पर यदि पूर्व की अपेक्षा कुछ विशेषता है तो वह एक २ अधिक नैरयिक के संचार करने की है बाकी का और सब कथन छह संयोग तक पहिले जैसा ही है। अब सूत्रकार षटक(६छ)संयोगमें कितनेक भंगोंको दिखाते हैं -(अहवा तिन्नि सकरप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए जाव एगे अहे सत्तमाए होजा) अथवा ભંગ અને તમપ્રભા સાથે ૧ ભંગ થાય છે. આ રીતે પહેલા વિકલપના કુલ
+५+४+3+२+१=२१ म थाय छे. सवा सात वियोगी विना ૨૧૪૭=૧૪૭ કુલ બ્રિકસંગી ભંગ થાય છે
" एव' जाव छक्क संजोगो य जहा सत्तण्हं भणिओ तहा अण्ह वि भाणियन्वो" सात नाना वो भाउ नारनसियाग, यतु सयास, ५५सयोग अने परस या ५ सम. “ नवरं एकेको अब्भहिमो संचारेयध्वो सेसं तं चेव जाव छक्कसंजोगो य" सात नारनाथन तi આઠ નારકોના કથનમાં એટલી જ વિશેષતા છે કે અહીં એક એક અધિક નારકને સંચાર કરવો જોઈએ. બાકીના છ સંગ પર્યન્તનું સમસ્ત કથન પહેલાના કથન પ્રમાણે જ સમજવું.
-
श्री. भगवती सूत्र : ८