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________________ प्रमैयचन्द्रिका टी० श०९ उ०२ सू०४ भवान्तरप्रवेशनकनिरूपणम् १३९ रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा १० ' अथवा एको रत्नमभायाम् , एकः शर्करामभायाम् , एको धूमप्रभायाम् , एकस्तमःप्रभायाम् , एकोऽधःसप्तम्यां भवति, १० 'अहवा एगे रयणप्पभाए एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए एगे धूमप्पभाए एगे तमाए होज्जा' ११' अथवा एको रत्नप्रभायाम् , एको वालुकामभायाम् , एकः पङ्कप्रभायाम् , एको धूममभायाम् , एकस्तमः प्रभायां भवति ११, 'अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए एगे अहे सत्तमाए होज्जा' १२ ' अथवा एको रत्नप्रभायाम् , एको वालुकाप्रभायाम् , एकः पङ्कप्रभायाम् , एको धूमप्रभायाम् , एकोऽधःसप्तम्यां भवति, १२. 'अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा) अथवा एक नारक रत्नप्रभा में एक नारक शर्कराप्रभा में एक नारक धूमप्रभा में, एक नारक तमः प्रभा में और एक नारक अधः सप्तमी पृथिवी में उत्पन्न हो जाता है १० (अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए होजा ११,) अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक वालुकाप्रभा में, एक नारक पंकप्रभा में, एक नारक धूमप्रभा में एक नारक तमः प्रभा में उत्पन्न हो जाता है ११, ( अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा) अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक वालुकाप्रभा में, एक नारक पंकप्रभा में, एक नारक धूमप्रभा में और एक नारक अधः सप्तमी में उत्पन्न हो जाता है १२, ( अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, सक्करप्पभाए, एगे धुमप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा” (१०) અથવા એક નારક રત્નપ્રભામાં, એક નારક શર્કરા પ્રસામાં, એક નારક ધમપ્રભામાં, એક નારક તમભામાં અને એક નારક નીચે સાતમી નરકમાં उत्पन्न थाय छे. “ अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकपभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए होज्जा" (11) अथवा से ना२४ २त्ननामा, એક નારક વાલુકાપ્રભામાં, એક નારક પંકપ્રભામાં, એક નારક ધૂમપ્રભામાં मन मे ना२४ तम:प्रभामा ५न्न थाय छे. “ अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा" (૧૨) અથવા એક નારક રત્નપ્રભામાં, એક નારક વાલુકા પ્રભામાં, એક નારક પકપ્રભામાં, એક નારક ધૂમપ્રભામાં અને એક નારક નીચે સાતમી નરકમાં उत्पन्न थाय छे. “ अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे श्री. भगवती सूत्र : ८
SR No.006322
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 08 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages685
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size40 MB
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